झारखंड के जामा में क्यों गांव-गांव भटक रही आईएएस की पत्नी
मातृभूमि का कर्ज उतारने में जुटी किसान की बेटी। जामा इलाके में महिला महिला सशक्तीकरण की साक्षात हस्ताक्षर। अपने लोगों की मदद के सफर पर निकल पड़ी मां। झारखंड की कला संस्कृति की विरासत को सहेजने-संवारने का जुनून रखने वाली कलाकार।
देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जामिया मिलिया इस्लामिया से पीएचडी की उपाधि, संथाली सांस्कृतिक विरासत पर गहन शोध, झारखंड फिल्म विकास काउंसिल की सदस्य, झारखंड कल्चरल ऑर्टिस्ट एसोसिएशन की संरक्षक, आईएएस ऑफिसर की पत्नी, झारखंड आईएएस ऑफिसर्स वाइव्स एसोसिएशन की कोषाध्यक्ष। ये परिचय असरदार तबके से आने वाली एक निहायत ही पढ़ी लिखी महिला का है। लेकिन आपको ये जानकार हैरानी होगी कि ये महिला पिछले ढाई साल से दुमका जिले के जामा और रामगढ़ प्रखंड में गांव-गांव और घर-घर भटक रही है।
संध्या:
इस महिला के भटकाव की वजह बताएं। उससे पहले इनके नाम से परिचित कराते हैं। ऊपर तस्वीरों में दिख रही महिला का नाम स्टेफी टेरेसा मुर्मू है। स्टेफी टेरेसा मुर्मू के इस भटकाव के पीछे एक नेक मकसद है। उन्होंने खुद को झारखंड के संथाल और ओबीसी बहुल दुमका जिले में विकास की नई बयार बहाने के लिए झोंक दिया है। इसकी पुरजोर वजह है। दरअसल स्टेफी की जड़े इसी इलाके में हैं। दुमका जिले से आने वाली स्टेफी की ससुराल भी इसी जनपद के जामा प्रखंड के अहलाद डुमरिया गांव में है।
करीब 46 फीसदी ओबीसी और 43 फीसदी संथाल आबादी वाले जामा और इससे सटे रामगढ़ प्रखंड में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की विकास योजनाओं की गूंज तो सुनाई देती है। लेकिन सैकड़ों सालों से विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट जाने वाले इन इलाकों में अभी भी बहुत कुछ किया जाना है। रोजगार की तलाश में पलायन यहां की प्रमुख समस्या है। ज्यादातर लोग नौकरी की तलाश में पश्चिम बंगाल और पंजाब चले जाते हैं। महिलाएं कोलकाता, दिल्ली, गुड़गांव जैसे शहरों में घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करती दिख जाएंगी। कई बार इसकी आड़ में मानव तस्करी की घटनाएं भी सामने आयी हैं।
स्टेफी को हमेशा से इस इलाके में समस्याएं कचोटती रहती थीं। जब मौका मिला है तो किसान की बेटी स्टेफी माटी का कर्ज चुकाने और अपने लोगों की मदद के सफर पर निकल पड़ी हैं। करीब ढाई साल पहले अहलाद डुमरिया गांव में ससुराल के आंगन से मदद के इस सफर का आगाज हुआ। ससुर के नाम पर रसिक बेसरा मेमोरियल फाउंडेशन की स्थापना हुई। शुरुआत गांव के बच्चों की पढ़ाई में सहायता के लिए ट्यूटर लगाने से हुई। घर के आंगन में ही पूरे गांव के बच्चों की ट्यूशन क्लास लगने लगी। जरूरतमंद छात्रों के कॉपी किताब की व्यवस्था हुई। शुरुआत में स्टेफी ने इसके लिए किसी से आर्थिक मदद नहीं ली। लेकिन जब दायरा बढ़ा तो एक गांव से शुरू हुई मदद की ये बयार दुमका जिले के दो प्रखंडों जामा और रामगढ़ तक फैल चुकी है।
स्टेफी टेरेसा मुर्मू आज जामा और रामगढ़ में मदद का दूसरा नाम है। बच्चों की पढ़ाई से लेकर इलाज तक स्टेफी हर जगह मदद के लिए मौजूद रहती हैं। किसानों, महिलाओं के बीच उनकी छवि एक मददगार बहन और बेटी के तौर पर है। उन्होंने पूरे इलाके में अभियान चला रखा है कि बच्चे घर पर ना पैदा हों। इसका असर भी दिखने लगा है। जामा और रामगढ़ प्रखंड में जरूरतमंदों को जल्द से जल्द इलाज मिल सके इसके लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की है। स्टेफी ये इंतजार नहीं करती कि लोग उनके पास मदद मांगने आएं बल्कि वे खुद मदद देने पहुंच जाती हैं।
स्टेफी जामा और रामगढ़ इलाके की तस्वीर बदलते देखना चाहती हैं। खुद को किसान की बेटी कहने में गर्व महसूस करने वाली स्टेफी इस इलाके के किसानों की तकदीर बदलने में अपना भी योगदान देना चाहती है। सामूहिक खेती इलाके की पहचान रही है। स्टेफी इसे बढ़ावा देने की हर मुमकिन कोशिश कर रही हैं। धान की रोपाई के दिनों में उन्होंने खुद किसानों के खेतों में उतरकर धान की रोपाई करायी। स्टेफी कहती हैं कि जब लोग उन जैसी पढ़ी लिखी महिला को खेतों में उतरकर सामूहिक खेती के माध्यम से धान रोपाई करते देखते हैं तो उनका हौंसला बढ़ता है। अन्नदाता में ईश्वर देखने वाली स्टेफी कहती हैं कि जब-जब हम दिन में खाना खाते हैं तो हमें किसानों का धन्यवाद करना चाहिए और अपने अपने स्तर से उनकी मदद की कोशिश करनी चाहिए।
स्टेफी खुद इस इलाके में महिला सशक्तीकरण की साक्षात हस्ताक्षर हैं। इसी इलाके से निकलकर कामयाबी की खुद की परिभाषा गढ़ने वाली स्टेफी चाहती हैं कि इस इलाके की बेटी भी पढ़े। आगे बढ़े। महिलाओं को सेहत और सुरक्षा की गारंटी मिले। वे लगातार गांव-गांव घूमकर महिला सशक्तीकरण की दिशा में काम कर रही हैं। महिलाओं और बच्चियों के छोटे-छोटे समूहों से बात कर उनकी समस्याओं को समझती हैं और उन्हें दूर कराने की पुरजोर कोशिश करती हैं।
स्टेफी के मदद का दायरा सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। बल्कि जामा और रामगढ़ इलाके में अब सरकारी मदद मिलने में आने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए भी लोग स्टेफी टेरेसा की सहायता लेते हैं। स्टेफी बताती हैं कि यहां लोगों की मांग या समस्याएं बहुत छोटी-छोटी हैं। लेकिन तंत्र ने इन समस्याओं को जटिल और बड़ा बना दिया है। स्टेफी बताती हैं कि सरकारी योजनाओं के पेंशन से जुड़ी दिक्कतें, दिव्यांगों के सर्टिकिकेट बनवाने जैसे काम भी कई बार बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में उनकी कोशिश इन समस्याओं को जल्द से जल्द दूर करने की होती है।
रसिक बेसरा मेमोरियल फाउंडेशन के जरिए स्टेफी टेरेसा मुर्मू अब तक सैकड़ों जरूरतमंद और असहाय लोगों की मदद कर चुकी हैं। बीमारियों से जूझ रहे गरीबों के आर्थिक मदद से लेकर उन्हें अस्पताल पहुंचाने तक की मदद फाउंडेशन के जरिए बखूबी की जा रही है। संसाधन भले ही सीमित हैं। लेकिन हौंसले बुलंद हैं। माटी का कर्ज चुकाने के मिशन में जुटी स्टेफी को अपने लोगों की सहायता के लिए किसी से मदद मांगने में भी कोई दिक्कत नहीं है। वो जामा और रामगढ़ में विकास की बयार बहाने के लिए “मोर पावर” की जरूरत बताती हैं।
स्टेफी के कार्यों का दायरा सिर्फ मदद और सहायता तक ही सीमित नहीं है। वे सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और बढ़ाने की भी हर मुमकिन कोशिशों में जुटी रहती हैं। झारखंड कल्चरल ऑर्टिस्ट एसोसिएशन की संरक्षक भी हैं। उन्होंने झारखंड राज्य में कला के संरक्षण की दिशा में कई काम किए हैं। संथालों की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत के सहेजने के लिए भी जमकर काम किया है। पटना वूमेन कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल करने वाली स्टेफी ने प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जामिया मिलिया इस्लामिया से एमए, एमफिल और पीएचडी की उपाधि हासिल की। पीएचडी में “ओरल ट्रेडिशन ऑफ संथाल” उनके शोध का विषय था।
पीएचडी से पहले एमफिल में भी स्टेफी के शोध का विषय संथालों की उत्पत्ति से जुड़ी कथा कराम बिनती रहा। आज के दौर में लगभग भुला दी गई कथाओं को कॉमिक्स के जरिए नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम किया है। स्टेफी की अगुवाई में एक सांस्कृतिक संस्था भी इस इलाके में काम कर रही है। इस संस्था का मकसद लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके स्थानीय लोक गीत और लोक संगीत को बचाना है। दो प्यारी बच्चियों की मां स्टेफी जहां परिवार के प्रति अपने दायित्व का पूरी जिम्मेदारी से निबाह करती हैं वहीं दूसरी तरफ मां और माटी का कर्ज चुकाने के पुनीत काम में भी जुटी हैं। मातृभूमि का कर्ज उतारने में जुटी धरती की इस बेटी को टीम बदलता इंडिया का सलाम।
Very nice mam u r working hard of people.so