प्रधानमंत्री मोदी का पैकेज किसान-गरीब-मजदूर को राहत या छलावा?
वित्त मंत्री की किसानों-मजदूरों के लिए 3.16 लाख करोड़ का ऐलान पूरी तरह से हवाई है। कागजी है। शब्दों का मकड़जाल मात्र है। इनमें ज्यादातर योजनाएं वर्षों से चल रही हैं। कुछ ऐसी हैं जो कब लागू होंगी? उनका बजट कहां से आएगा? शायद वित्त मंत्री को भी नहीं पता। वित्त मंत्री की घोषणा परत दर परत पड़ताल से आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इसमें कितना छलावा है।
डॉ. संजय लाठर, सदस्य विधान परिषद, उ.प्र.
प्रधानमंत्री के 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा के बाद अब वित्त मंत्री ने शहरी गरीब, किसान, प्रवासी, ग्रामीण मजदूरों, पशुपालकों, मत्स्य पालकों बारे में घोषणा की। यह संकट काल में किसान मजदूर के कितनी साथ खड़ी है? कितनी हिमायती है? इसका हाल हम इस वर्ग के लिए कोरोना संकट से पहले भी सरकार के उठाए गए कदमों में देख चुके हैं। किसानों आय दोगुना और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने का लुभावना नारा देकर सत्ता में आने वाली भाजपा सरकार ने अब तक सिर्फ उद्योगपतियों और धनकुबेरों पर ही मेहरबानी दिखाई है।
सरकार की कृषि क्षेत्र के प्रति दुर्भावना और गलत नीतियों के कारण देश की कृषि विकास दर 2.7 पर सिमट चुकी है। संकट के बाद भी कृषि क्षेत्र की नीतियों में अपेक्षित बदलाव नहीं किए गए। लॉकडाउन के पहले ओलावृष्टि, बेमौसमी बारिश के कारण बर्बाद हो चुके किसानों को मदद की बजाए सरकार से केवल जुमलेबाजी और आंकड़ेबाजी ही हासिल हुई। डेढ़ घंटे की भाषण में 14-15 घोषणाएं करने के बाद भी वित्त मंत्री कई योजनाओं पर तो स्पष्ट ही नहीं कर पायीं कि ये कब लागू होंगी और पैसा कहां से आएगा। खेती-किसानी के साथ कृषि के इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक के बारे में उनके भाषण का परत दर परत विश्लेषण पढ़िए।
- वित्त मंत्री ने घोषणा की कि इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक लाख करोड़ का फंड मिलेगा। लेकिन यह नहीं बताया यह फंड कब बनेगा। सरकार कितना पैसा डालेगी। किसान को क्या देना होगा। कोऑपरेटिव सोसाइटी क्या देंगी। नाबार्ड या सरकार क्या देगी। यह किसकी और कैसे मदद करेगा। कुछ पता नहीं ये केवल हवाई पुलिंदा भर है।
- वित्त मंत्री ने घोषणा की कि किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए हमने 2 लाख करोड़ की मदद की है। सभी जानते हैं कि किसान क्रेडिट कार्ड योजना अब नहीं शुरू हुई है। ये 1998 से चल रही है। सरकार ने बजट बढ़ाकर भी नया काम नहीं किया। इसका बजट हर वर्ष 10 फीसदी बढ़ता ही है।
- वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने नाबार्ड के जरिए 30 हजार करोड़ की मदद की है। इसकी घोषणा पहले के पैकेज में भी कर चुकी हैं। यह कोई नई बात नहीं है। नाबार्ड रिजर्व बैंक से धन लेकर सहकारी क्षेत्र के बैंकों को धन मुहैया कराता है। यह कार्रवाई निरंतर जारी है।
- वित्त मंत्री ने कहा कि कैंपा फंड में 6000 करोड़ दिए जाएंगे। पौधारोपण और हरियाली बढ़ाने के लिए कैंपा फंड में फरवरी 2020 में 54000 करोड रुपए था। राज्य सरकारों से 6000 करोड़ के प्रोजेक्ट अभी प्राप्त हुए होंगे। वह भी उन्होंने कोरोना राहत के तौर पर गिना दिए।
- हाउसिंग लोन पर सब्सिडी योजना 1 वर्ष बढ़ाने की बात की। सब जानते हैं मिडिल क्लास के हाउसिंग लोन सब्सिडी के लिए 70000 करोड रुपए दिया था। खराब आर्थिक हालात के कारण कोई लोन लेने को तैयार ही नहीं था इसीलिए योजना को आगे बढ़ाया गया।
- वित्त मंत्री ने घोषणा की कि 5000 करोड़ से रेहड़ी पटरी वालों को 10000 रुपये लोन दिए जाएंगे। ज्यादातर रेहड़ी-पटरी वाले अपने गांव लौट चुके हैं या फिर जा रहे हैं। वे लोन कब लेंगे। दूसरी आधार-पता आदि ना होने के कारण बैंक लोन देने में हजार तरह की समस्या खड़ी करते हैं।
- वित्त मंत्री ने घोषणा की है मुद्रा शिशु लोन में 1500 करोड़ की ब्याज राहत दी जाएगी। 3 करोड़ लोगों में पंद्रह सौ करोड़ का ब्याज बांटा जाए तो औसत बांटा जाए तो एक व्यक्ति का 200 से 300 रुपये का ब्याज माफ होगा। यह गरीब दुकानदारों की मदद की है।
- मजदूरों को मुफ्त राशन में 35 सौ करोड़ रुपए खर्च होगा। अब सवाल उठता है। ये राशन कहां बंटेगा। सड़क पर। रेल की पटरी पर। शहरों की खाली पड़ी खोलियों में। अभी कितने मजदूरों को राशन मिला कुछ पता नहीं। हां कुछ राज्य सरकारें जरूर ऐसा कर रही हैं।
- वित्त मंत्री ने कहा कि वन नेशन वन राशन कार्ड अगस्त 2020 तक लागू किया जाएगा। वैसे तो यह स्कीम मनमोहन सरकार ने शुरू की थी। पिछले साल केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने घोषणा की थी कि 1 जून 2020 तक लक्ष्य पूरा कर देंगे। अब सरकार इसे समय पर लागू नहीं कर पायी है। और वित्त मंत्री अपनी सरकार की नाकामी का भी श्रेय ले रही हैं।
- वित्त मंत्री ने एक और बेतुकी घोषणा का श्रेय लिया कि सरकार आठ करोड़ लोगों को खाना खिला रही है। सब आपके सामने है। सरकार खाना खिला रही होती तो मजदूर इतना बड़ा पलायन क्यों करते। आज ज्यादातर मजदूर सड़कों पर है। या गांव पहुंच चुका है। सरकार कहीं खाना नहीं खिला रही है। हां गांव और छोटे शहरों में लोग आपदा में जरूर मदद कर रहे हैं। कुछ राज्य सरकारें भी थोड़ा बहुत कार्य कर रही है।
- सरकार ने अजीबोगरीब घोषणा करके श्रेय लिया कि 75 हजार करोड़ का अनाज एमएसपी पर खरीदा है। इसमें सरकार का क्या एहसान है। सरकार 100 वर्षों से अंग्रेजों के जमाने से एमएसपी पर गेहूं व अन्य सामान खरीदती आई है। ओलावृष्टि व बेमौसम बारिश बर्बाद हो चुकी फसल पर सरकार न तो कोई बोनस दिया। एमएसपी भी नहीं बढ़ाया। सच्चाई यह है किसानों को लागत मूल्य भी नहीं मिला है।
- वित्त मंत्री ने कहा पीएम किसान सम्मान निधि के 6000 रुपये किसानों को सालाना में दिए गए। यह योजना पहले की है। इसके नाम पर भाजपा लोकसभा चुनाव भी जीत चुकी हैं। इसका कोरोना राहत से कोई लेना देना नहीं है।
- वित्त मंत्री ने कहा फसल बीमा योजना से किसानों की मदद की जा रही है। सब जानते हैं कि यह पहले की योजना है। वह भी फ्लाप हो चुकी है। पिछले वर्ष किसानों ने अपनी जेब से और सरकार ने बीमा कंपनियों को 28,821 करोड़ रुपये प्रीमियम दिया। क्लेम केवल 16,763 रूपये ही हो पाया। बीमा कंपनियां इसमें भी हजारों करोड़ रुपए कमा गई। प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान का भी क्लेम किसानों को नहीं मिला। सरकार इस योजना का भी श्रेय ले रही है।
- वित्त मंत्री ने घोषणा की कि 500 करोड़ रुपए से मधुमक्खी पालकों की मदद की जाएगी। इससे 20 लाक लोगों को फायदा होगा। यह कब मिलेगा। कैसे मिलेगा। कुछ नहीं बताया। यह लोन होगा। सब्सिडी होगी। कुछ नहीं पता है। फिलहाल घोषणा से तो यही लगता है कि आज के दिन इसमें कुछ भी नहीं मिलने वाला है।
- सरकार ने टॉप योजना के विस्तार की बात कही। सच्चाई यह है कि टॉप यानी टमाटर, प्याज और आलू के दूसरे राज्यों में परिवहन आदि की मदद के लिए पहले से 162 करोड़ रुपए खर्च होने थे। लेकिन परिवहन का ज्यादा खर्च होने के कारण किसानों को सब्सिडी से नुकसान ही होता था। अब सरकार इतने ही रुपए में प्याज, आलू, टमाटर के साथ सभी सब्जियां जोड़ दी। इससे किसानों को फायदा के बजाय नुकसान होगा। इसमें भी सरकार एक रुपया खर्च नहीं कर रही है।
- सरकार ने कहा है कि औषधि पौधों के लिए 4000 करोड़ की मदद देगी। सच्चाई है इसमें ज्यादातर पैसा क्षेत्रीय मंडियों पर खर्च होने हैं। हालांकि इसमें भी शक है, क्योंकि गंगा व एक्सप्रेस-वे के किनारे अखिलेश यादव जी ने जो मंडिया शुरू की थी। उनका भी काम सरकार ने ठप कर रखा है।
- वित्त मंत्री ने जोर-शोर से कहा कि कृषि ऋण का समय बढ़ा दिया है। सच्चाई यह है कि इसमें 3 महीने का मोरेटोरियम दिया है। इसमें भी किसानों को मूल समेत पूरा ब्याज देना होगा। इसमें कोई सब्सिडी या मदद नहीं है मोरेटोरियम बढ़ाना था तो 1 साल का बढ़ाते। 3 महीने से क्या होने वाला है। इसमें सरकार ने एक पैसा की मदद नहीं की।
- वित्त मंत्री ने कहा मनरेगा की मदद से मजदूरों की मदद करने का काम किया है। लेकिन सच्चाई यह है कि ये आज की स्कीम नहीं है। ये योजना मनमोहन सरकार के समय से चल रही है। पिछले वर्ष इस में 71 हजार करोड़ रुपए खर्च हुआ था। मोदी सरकार ने बजट में 10,000 करोड़ पर घटा दिए। पिछले वर्ष के मुकाबले इन 8 महीनों में बहुत कम काम मिला है।
- सरकार ने कहा सेल्फ हेल्प ग्रुप को मदद बढ़ा दिया है। उन्होंने सैनिटाइजर और मास्क बनाए हैं। सच्चाई यह है कि सेल्फ हेल्प ग्रुप इस तरह का काम कई सालों से कर रहे हैं। सरकार ने इसमें कुछ भी नया नहीं किया है और ना ही सेल्फ ग्रुप की आर्थिक मदद की है।
- वित्त मंत्री ने कहा हमारी सरकार लेबर कोड से सभी को न्यूनतम वेतन दिलाएगी। सच्चाई इसके बिलकुल अलग है। लेबर कोड से न्यूनतम वेतन दिलाना तो बहुत दूर की बात है। उत्तर प्रदेश समेत भाजपा की कई प्रदेश सरकारों ने पहले से मौजूद श्रम कानूनों को स्थगित कर दिया। इससे मजदूरों के अधिकारों व वेतन कटौती होना लाजमी है। इसमें मदद की बजाए मजदूरों को सरकार ने बर्बाद किया है।
- सरकार ने कहा हम प्रवासी मजदूरों के लिए रेंटल हाउसिंग स्कीम लाएंगे। इसमें पीपीपी मॉडल पर किराए के लिए मकान बनाए जाएंगे, लेकिन यह नहीं बताया कि ये कब शुरू होगा। सरकार की इसमें क्या मदद होगी। लेकिन इतना स्पष्ट है कि आज कुछ नहीं होने वाला है।
- सरकार ने कहा क्रेडिट लिंक सब्सिडी से ब्याज में सब्सिडी देगी। यह स्कीम भी आज की नहीं है। 3 सालों से चल रही है। ये पहले भी कामयाब नहीं रही है। इसमें भी सिर्फ अवधि बढ़ी है।
- वित्त मंत्री ने कहा हम ई मार्केट शुरू कर रहे हैं। इससे किसान ऊंचे दामों पर फसल बेच सकेंगे। सच्चाई यह है कि यह योजना कई वर्षों से चल रही है। उत्तर प्रदेश में लोग तो लोग इसका लाभ भी उठा रहे हैं।
- वित्त मंत्री ने कहा आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव होगा। किसानों के स्टॉक की लिमिट बढ़ेगी। लेकिन कानून कब बनेगा, कुछ नहीं बताया। सरकार ने अध्यादेश लाने की बात भी नहीं कही है।
- वित्त मंत्री ने घोषणा की कि पशुपालन सेक्टर में इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 15000 करोड रुपए मिलेगा। लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है। पोल्ट्री उद्योग में इंफ्रास्ट्रक्चर मदद की जरूरत है। ये सेक्टर बर्बाद हो चुका है। सरकार ने मदद नहीं की। डेयरी उद्योग की मदद का खुलासा नहीं किया है। यह पैसा कब और किस तरह से से लोगों को मिलेगा कोई अता पता नहीं है।
- पशुओं के टीकाकरण के लिए 13,343 करोड़ रुपए दिया जाएगा। सच्चाई यह है कि यह घोषणा आज की नहीं है। 2019 में मोदी जी ने मथुरा से शुरू की थी इसका कोरोना राहत से कोई लेना-देना नहीं है।
- वित्त मंत्री ने कहा कि 560 लाख लीटर दूध खरीदकर कर किसानों की मदद की है। सच्चाई यह है सरकार ने इसमें कोई मदद नहीं की है। ना दूध की कीमत बढ़ाई। ना सब्सिडी बढ़ाई। ना बोनस दिया। दूध हमेशा की तरह अमूल, वीटा, पराग जैसी सहकारी संस्थाओं ने खरीदा है।
- सरकार ने घोषणा की कि मछली पालन के क्षेत्र में 20,000 करोड़ की मदद की जाएगी। सच्चाई यह है मत्स्य संपदा योजना को बजट में घोषित किया गया था। जिसमें 50 लाख लोगों को रोजगार की बात कही थी। इसमें समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन के लिए एक 11 हजार करोड़ व घरेलू मत्स्य पालन के लिए 9000 करोड़ का ऐलान किया। इस योजना का भी कोरोना राहत से कोई लेना-देना नहीं है।
वित्त मंत्री की घोषणाओं की परत दर परत पड़ताल से साफ पता चलता है कि इसमें राजकोषीय मदद ना के बराबर है। जो भी मदद है, उसकी घोषणा बजट में पहले हो चुकी है। जो बची है उसमें भी वित्त मंत्री यह नहीं बता सकी कि यह कब और कैसे लागू होगी। पैसा कहां से आएगा? कुल मिलाकर यह घोषणा सिर्फ शब्द का मकड़जाल ही लगी है।
(लेखक डॉ. संजय लाठर समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं।)