बच्चों के “भाईसाहब” कैलाश सत्यार्थी
संध्या:
चार दशकों से बच्चे सत्यार्थी के सरोकार और उद्देश्य बने हुए हैं। उनके कर्तव्य और नैतिक बल भी बच्चे हैं। उन्होंने बच्चों के सपनों को अपने सपनों से जोड़ लिया है। और बच्चों के प्रति जिस प्यार एवं स्नेह ने नेहरू जी को चाचा नेहरू बनाया, वही प्यार एवं करुणा ने श्री सत्यार्थी को ‘‘भाईसाहब’’ बना दिया। सत्यार्थी आंदोलन से जुड़े लाखों बच्चे एवं कार्यकर्ता उन्हें भाईसाहब के संबोधन से ही पुकारते हैं।
आज बाल दिवस है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1964 से पहले भारत में 20 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता था, क्योंकि 1954 में संयुक्त राष्ट्र ने 20 नवंबर को ही बाल दिवस मनाने का ऐलान किया था। लेकिन, 1964 से हमारे देश में यह परंपरा बदल गई। नेहरूजी के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि उनको बच्चों से बेहद लगाव था। बच्चों को महत्व देने के कारण ही वे “चाचा नेहरू” कहलाए। इसी कड़ी में अब नाम जुड़ गया है बच्चों के अधिकारों के लिए वैश्विक संघर्ष करने वाले नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी का। जिन्हें बच्चे प्यार से “भाईसाहब” कहते हैं।
चार दशकों से वे बच्चों के शोषण और गुलामी के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। सत्यार्थी के प्रयास से ही आज बाल श्रम और बाल हिंसा एक वैश्विक मुद्दा बन गया है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानून बने। कानून और नीतियों के निर्माण से करोड़ों बच्चे बाल श्रम के दलदल से मुक्त होकर खुशहाल जीवन जी रहे हैं। जबकि सत्यार्थी सीधी छापामार कार्रवाई के तहत 90 हजार से अधिक बच्चों को बाल दासता से मुक्त करा कर उनके चेहरे पर मुस्कान ला चुके हैं। गुलामी से मुक्ति की इस छापामार कार्रवाई के दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमला भी हो चुका है।
आज के दिन कैलाश सत्यार्थी के योगदान को इसलिए भी याद किया जाना चाहिए कि उन्हीं के प्रयास से देश-और दुनिया में बाल श्रम के खिलाफ कानून बना है। जिसने दुनिया के करोड़ों बच्चों की जिंदगी को संवार दिया है। सत्यार्थी ने इंजीनियरिंग का अपना बेहतरीन करियर छोड़ कर 1980 में बचपन बचाओ आंदोलन की नींव रखी। उन्हीं की मांग पर भारत में 1986 में बाल श्रम के खिलाफ कानून बना। जबकि बाल मजदूरी के खिलाफ अंतरऱाष्ट्रीय कानून बनवाने के लिए उन्होंने 1998 में बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन किया। तब छह महीने चली यह ऐतिहासिक यात्रा 103 देशों से गुजरते हुए करीब 80 हजार किलोमीटर की दूरी तय की थी। यात्रा को 100 से ज्यादा राष्ट्राध्यक्षों, प्रधानमंत्रियों, राजा-रानियों और वैश्विक नेतों का समर्थन मिला।
यात्रा इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन (आईएलओ) के जिनेवा स्थित मुख्यालय पर समाप्त हुई थी। इससे आईएलओ पर दबाव बना और उसने यात्रा के एक साल बाद ही बाल श्रम के सभी रूपों पर प्रतिबंध लगाने वाले अंतरराष्ट्रीय कानून आईएलओ कनवेंशन-182 पारित किया। आईएलओ के सभी 187 सदस्य देश हस्ताक्षर कर कनवेंशन-182 को अपने यहां लागू चुके हैं। बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून की मांग को लेकर सत्यार्थी ने 1998 में जब बाल श्रम विरोधी विश्व यात्रा का आयोजन किया था, तब पूरी दुनिया में बाल मजदूरों की संख्या करीब 26 करोड़ थी। जो अब घट कर करीब 15 करोड़ हो चुकी है। सत्यार्थी की वजह से आज करीब 10 करोड़ से अधिक बच्चे बाल दासता से मुक्त हो चुके हैं। यही वजह है कि आज बच्चों की निगाह में श्री सत्यार्थी को सबसे ऊंचा स्थान हासिल है। लोग अब सत्यार्थी को ‘‘बच्चों की आस कैलाश’’ कहने लगे हैं।
सत्यार्थी के नेतृत्व में आज भी बच्चों को बाल मजदूरी और गुलामी से मुक्ति का अभियान जारी है। मुक्त किए गए बच्चों को जब राजस्थान के विराटनगर स्थित ‘‘बाल आश्रम’’ और दिल्ली से सटे बुराड़ी के ‘‘मुक्ति आश्रम’’ लाया जाता है, तब उन शोषित-पीडि़त बच्चों को, जिनकी सभी तरह की इच्छाएं और आकांक्षाएं नष्ट हो जाती हैं, सत्यार्थी हंसा कर, खेला कर, उनका जन्मदिन मनाकर, नचा कर, चुटकुला सुनाकर उन्हें उनकी पुरानी बदतर जिंदगी को भुलाने की कोशिश करते हैं। उन्हें नए सिरे से सपना संजोने का मौका प्रदान करते हैं। तभी तो आश्रम के बच्चे सत्यार्थी का दिल्ली से आने का इंतजार करते रहते हैं। मुक्ति आश्रम और बाल आश्रम सत्यार्थी द्वारा स्थापित बाल श्रम से मुक्त बच्चों का देश का पहला लघुकालीन और दीर्घकालीन पुनर्वास केंद्र है। आश्रम में रहने वाले बच्चे पढ़ लिखकर इंजीनियर, वकील, शिक्षक, गायक, वादक, पेंटर, सैनिक आदि बन रहे हैं और समाज की मुख्यधारा में शामिल हो कर अपना जीवन संवार रहे हैं।
समाज के कमजोर और हाशिए के बच्चों की आंखों से झांकती हताशा, निराशा, भय, बेबसी कैलाश सत्यार्थी को चैन से बैठने नहीं देती। कोरोना महामारी से उपजे संकट से बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। लिहाजा, कोरोना काल में भी उनके नेतृत्व में देश के कोने-कोने में ट्रैफिकिंग, बाल श्रम, बाल विवाह एवं बाल यौन शोषण के खिलाफ सघन जन-जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चों को पुलिसिया कार्रवाई के तहत छुडवाया जा रहा है। सत्यार्थी इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बराबर अपील कर रहे हैं कि कोविड-19 से प्रभावित करोड़ों बच्चों के स्वास्थ्य, ऑनलाइन शिक्षा एवं सुरक्षा का समुचित प्रबंध किया जाए।
सत्यार्थी अमीर देशों के संगठन जी-20 से कोविड़ अनुदान का 20 फीसदी गरीब बच्चों पर खर्च करने की लगातार अपील कर रहे हैं। इस मांग को वैश्विक आवाज देने के लिए वे नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एकजुट और लामबंद भी कर रहे हैं। सत्यार्थी ने इसी उद्देश्य से सितबंर में बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ‘’फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन’’ नाम से दुनिया का सबसे बड़ा दो दिवसीय समिट आयोजित किया गया। कोविड-19 की वजह से ऑनलाइन आयोजित इस समिटि में दुनियाभर के दर्जनों नोबेल पुरस्कार विजेता और वैश्विक नेता बच्चों के अधिकारों के लिए इकट्ठा हुए।
कैलाश सत्यार्थी की चिंता है कि कैसे उनके जीते-जी दुनिया से बाल श्रम का अंत हो जाए? वे अपने जीते जी ही दुनिया के सभी बच्चों को शिक्षा, सुरक्षा और बचपन को भरपूर जीने के अधिकार से सुरक्षित कर देना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने “100 मिलियन फॉर 100 मिलियन” नामक वैश्विक आंदोलन की शुरुआत की है। इस आंदोलन का उद्देश्य दुनिया के ऐसे 10 करोड़ युवाओं को तैयार करना है जो 10 करोड़ हाशिए और वंचित बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए संघर्ष कर सकें। फिलहाल यह आंदोलन तकरीबन 40 देशों में चलाया जा रहा है।
इन देशों में 67 साल के कैलाश सत्यार्थी को बच्चों के अधिकारों के लिए नौजवानों के साथ सड़क पर संघर्ष करते देखा जा सकता है। इसी आंदोलन के तहत उन्होंने भारत में बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग के खिलाफ दुनिया की सबसे बड़ी जन-जागरुकता यात्रा का आयोजन किया। इस दौरान वे लगातार 35 दिनों तक 22 राज्यों में सड़कों पर मार्च करते रहे। इस आंदोलन में उनके साथ मार्च में 12 लाख से अधिक लोग सड़कों पर उतरे। बच्चों के प्रति उनके त्याग और समर्पण ने ही उन्हें बच्चों का चहेता बना दिया है। वे सच्चे अर्थों में बच्चों के “भाईसाहब” हैं। जब तक वे बच्चों के संग-साथ हैं, तब तक रोजाना बाल दिवस है।
(संध्या चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट और स्पेशल चाइल्ड थैरेपिस्ट हैं। बच्चों के मुद्दों पर लेखन करती हैं।)