रेलवे के सिस्टम में सदा के लिए जुड़ा रेल अफसरों का बनाया सहायता का ‘सेतु’
अलोका:
कोरोना काल में भारतीय रेल के कुछ अफसरों ने सहायता का ऐसा सेतु बना दिया जो अब रेलवे के सिस्टम में सदा के लिए जुड़ गया है। सहायता का ये सेतु कोराना काल में मेडिकल, राशन, दवाओं समेत जरूरी सामानों को सीमित यातायात के बीच गंतव्य तक पहुंचाने का ऐसा जरिए बना जिसकी प्रशंसा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की।
रेल अफसरों की पहल सेतु के इस सफर की शुरुआत लॉकडाउन के चंद दिनों बाद हुई। मार्च महीने के आखिर में देश भर में तालाबंदी का ऐलान हुआ। सब कुछ ठप हो गया। सड़क-रेल यातायात सीमित हो गया। सिर्फ जरूरी सामानों की सीमित आवाजाही की ही मंजूरी थी। जब सब कुछ ठप था, ऐसे में सीमित आवाजाही में जरूरी सेवाओं की आपूर्ति में अड़चन आने लगी। रेलवे की सिर्फ पार्सल ट्रेनें ही कुछ नियत स्टेशनों से ही चल रही थीं।
ऐसे में देश भर में कहीं किसी को आपातकालीन दवा की जरूरत थी। कहीं मेडिकल सामानों की आपूर्ति होनी थी। कहीं पीईपी किट जैसे मेडिकल सामान पहुंचने बहुत जरूरी थे। फॉर्मा कंपनियों को कच्चे माल की सप्लाई रुकने से दवाओं का प्रोडक्शन प्रभावित होने लगा था। कहीं राशन पहुंचने थे। लोग परेशान थे। मदद की अपील वाले ट्वीट सोशल मीडिया पर बढ़ते जा रहे थे।
टुंडला में तैनात 2016 बैच के आईआरटीएस अफसर संजय कुमार को मदद की मांग वाले इन ट्वीट्स को देखकर एक आइडिया सूझा। रेल अफसर संजय नौकरी के अलावा लगातार सामाजिक मोर्चे पर भी सक्रिय रहते थे। उन्होंने अपने कुछ बैचमेट से बात की। साथी मदद के लिए तैयार थे। इसके बाद उन्होंने प्रयागराज डिवीजन में तैनात सीनियर डीसीएम संचित त्यागी से बात की। रेलवे की तत्कालीन सीमित यातायात में जरूरी सामानों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने की व्यवस्था बनाने को लेकर चर्चा हुई। इस चर्चा से सेतु का जन्म हुआ। शुरुआत रेलवे के प्रयागराज मंडल से हुई।
संजय कुमार से बातचीत के बाद तय हुआ कि एक हेल्पलाइन नंबर जारी हो। इस पर जरूरी सामानों जैसे पीपीई किट, मेडिकल सामानों, आदि की बुकिंग की हो। इसकी निगरानी खुद सेतु टीम से जुड़े रेल अफसर करेंगे। – संचित त्यागी, सीनियर डीसीएम, प्रयागराज मंडल
लॉकडाउन की वजह से वडोदरा में आईआरटीएस के 40 प्रोबेसनर्स ऑफिसर फंसे हुए थे। उनसे बात की गई। प्रोबेशनर्स भी सेतु टीम जुड़ गए। प्रोबेशनर्स के जुड़ने से टीम की ताकत बढ़ गई। अब एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया। ये नंबर एक प्रोबेशनर्स ऑफिसर का ही था। शुरुआत दिन में कॉल रिसीव करने से हुई। लेकिन जब कॉल बढ़ने लगी और मदद के लिए बहुत सारे ट्वीट आने लगे तो प्रोबेसनर्स तीन शिफ्ट में ड्यूटी करने लगे।
शुरुआत व्यावसायिक थी। लेकिन जल्दी ही व्यक्तिगत और सामाजिक मदद भी की जाने लगी। व्यक्तिगत मदद की सबसे भावुक कर देने वाली घटना एक आटिस्टिक बच्चे से जुड़ी है। आटिस्टिक बच्चे को ऊंटनी के दूध की जरूरत थी। बच्चा इसके अलावा और कुछ नहीं खाता था। लॉकडाउन की वजह से उंटनी का दूध मिलना असंभव था। ऐसे में बच्चे की जीवन मुश्किल में था। उसकी मां ने ट्वीट कर सोशल मीडिया पर मार्मिक अपील की। इस बच्चे की मदद के लिए उड़ीसा में तैनात पुलिस अफसर अरुण ने सेतु टीम से संपर्क किया। इसके बाद तो अफसर से लेकर रेलवे का पूरा सिस्टम इस बच्चे की मदद के लिए उतर पड़ा। पार्सल ट्रेन को उस स्टेशन पर रोका गया जहां स्टापेज नहीं था। कई अफसरों और रेलवे के मदद से बच्चे के लिए ऊंटनी का दूध राजस्थान से मुंबई तक पहुंचा। सेतु टीम के पास ऐसे मदद के सैकड़ों कहानियां हैं।
सेतु कुछ रेल अफसरों को स्वत स्फूर्त और निजी प्रयास था। रेलवे अफसर इसके लिए खुद आगे आए थे। हेल्पलाइन नंबर पर कॉल जाती। इसके बाद अफसरों का पूरा सिस्टम खुद जरूरी सामान पहुंचाने में जुट जाता।
सेतु सिस्टम में प्रयागराज मंडल में तैनात सीनियर डीसीएम संचित त्यागी, संजय कुमार और मुंबई में तैनात एक अफसर के अलावा 40 प्रोबेशनर्स की टीम दिन रात लगी थी। हालांकि देशभर में तैनात रेलवे के अफसर इस सिस्टम से जरूरत पड़ने पर तुरंत जुड़ जाते थे। जहां से सामान की बुकिंग होती थी, बीच में जहां सामान एक पार्सल ट्रेन से दूसरी में चढ़ना होता और जहां सामान पहुंचना होता था। इन सभी जगहों के रेलवे अफसर सामान की डिलवरी तक निगरानी करते थे।
सेतु टीम के साथ सिर्फ देश भर के रेलवे अफसर और कर्मचारी ही नहीं जुड़े। बल्कि टीम ने एनडीआरएफ, जिला प्रशासन, पुलिस, स्वयंसेवी संस्थाओं, निजी कंपनियों को भी सहायता के इस सेतु से जोड़ा। रेलवे स्टेशन से रेलवे स्टेशन तक सामान ट्रेन पहुंचाती थी। उससे आगे सामान पहुंचाने के लिए प्रशासन, पुलिस, निजी कंपनियों की मदद ली गई। कई बार लोगों ने निजी वाहन से सामान की आपूर्ति की। यहां तक की जरूरी सामानों को पुलिस ने अपनी पेट्रोलिंग गाड़ी से गंतव्य तक पहुंचाया।
लॉकडाउन में सेतु टीम ने हजारों जरूरतमंदों की भी मदद की। सैकड़ों लोगों ने हजारों किलोमीटर दूर रह रहे परिजनों तक जीवनरक्षक दवाएं सेतु टीम के जरिए भिजवाईं। इसके लिए रेलवे ने एक पैसा नहीं लिया।
लॉकडाउन खत्म होने के बाद सेतु टीम का भी काम खत्म हो गया। प्रोबेशनर्स भी अपनी-अपनी ड्यूटी पर चले गए। लेकिन टीम इस प्रयास को आगे भी जारी रखना चाहती थी। संचित त्यागी बताते हैं कि रेलवे बोर्ड को सेतु टीम के बुकिंग मॉडल का प्रपोजल बनाकर भेजा गया। मेंबर ट्रैफिक ने इस मॉडल को देश भर में लागू करने की मंजूरी दे दी। रेलवे के हेल्पलाइन नंबर 139 पर फोन कर कोई भी शख्स सामान की बुकिंग के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। रेलवे में पहले ये सुविधा नहीं थी।
लॉकडाउन में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने सेतु टीम की तारीफ की। रेलवे बोर्ड ने टीम से जुड़े हर रेल अफसर को प्रशस्ति पत्र दिया। लॉकडाउन ने रेलवे को कुछ रेल अफसरों की पहल से एक ऐसा सिस्टम दे दिया जो रेलवे की कमाई बढ़ाने के लिए लिहाज से उपयोगी तो है ही साथ ही बुकिंग के लिए ग्राहकों की परेशानी भी इसने खत्म कर दी। इसके अलावा लॉकडाउन में रेलवे ने समाज से जुड़े होने के दायित्व को भी बखूबी निभाया है।
(अलोका रांची के झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय में मास कम्युनिकेशन एमए द्वितीय वर्ष की स्टूडेंट हैं। सामाजिक विषयों पर लेखन उनका प्रिय शगल है। अलोका बदलता इंडिया के इंटर्नशिप प्रोग्राम से जुड़ी हैं।)