भारतीयता, राष्ट्रीयता व राष्ट्रप्रेम के विरोध का गुपचुप एजेंडा
संजीव उनियल:
धारा 370 को धराशाई करने के ख़िलाफ़ और पहले वाले कश्मीर के स्टेट्स को पुनः स्थापित करने के उदेश्य से घाटी की सात पार्टियां इकट्ठा हुई हैं। जिसका नाम उन्होंने गुपकार एलायंस रखा है। गृह मंत्री अमित शाह ने इनको नाम दिया है- नापाके ग्लोबल गठबंधन। ये गुपकार गैंग संसार के विभिन्न देशों से भी इसमें भागीदारी निभाने की पेशकश कर रहा है। ये घोर आलोकतंत्रिक, देशविरोधी व ग़ैर संवैधानिक क़दम है।
सबसे कष्टमय व चौंकाने वाली घटना इसमें ये है कि भारत की सबसे पुरानी व ऐतिहासिक राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस भी गुपकार गैंग के साथ मिल गई है। राजनैतिक दंगल के अखाड़े में पटखनियां खाते-खाते ‘कांग्रेस’ का अब पीठ पर वार करते हुए अड़ंगी देकर देश के विकास की गति को रोकना ही एकमात्र उददेश्य रह गया है।
भ्रष्टस्य कन्या: गति:।
अर्थात भ्रष्टता की कोई भी सीमा नहीं होती, वह बढ़ते बढ़ते बहुत ही भयानक रूप ले लेता है। गुपकार गैंग का गुपचुप एजेंडा सिर्फ़ पाकिस्तान और चीन के इशारे पर भारत को कमज़ोर करना है। फ़ारूख अब्दुल्ला व महबूबा मुफ़्ती व टीम का भारतीय संविधान व संसद के विरुध युद्ध की घोषणा है। गुपकर घोषणा पत्र (declaration) का ये कहना है कि वह जम्मू और कश्मीर को एक विशेष “सेक्युलर भारत की सीमा में मुस्लिम बहुल राज्य बनाएंगे।“
राष्ट्र ही सर्वोपरि है। यहां इस संदर्भ का कोई औचित्य गुपकार गैंग ने छोड़ा ही नहीं है। इस भारत वर्ष में तो इस श्लोक के माध्यम से राष्ट्र की महिमा को वर्णित किया गया है कि –
राष्ट्ररक्षासमं पुण्यं, राष्ट्ररक्षासमं व्रतम्, राष्ट्ररक्षासमं यज्ञो, दृष्टो नैव च नैव च।।
अर्थात राष्ट्र की रक्षा के समान कोई पुण्य नहीं है। राष्ट्र रक्षा के समान कोई व्रत नहीं है। व राष्ट्र रक्षा के समान कोई यज्ञ नहीं है, अथवा राष्ट्र ही सबसे बड़ा धर्म है। राष्ट्र हित को दरकिनार रखकर कांग्रेस लगातार गुपकार गैंग को पीछे से ऑक्सीजन देने का काम कर रही है।
वास्तव में गुपकार गैंग ने पिछले 72 वर्षों में लगातार सत्ता की मलाई का स्वाद लिया है। सरकारी बंगलो में रहना, परमानेंट रेज़िडेंट के सर्टिफ़िकेट का लाभ उठाना, अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ाना व बसाना इत्यादि इन गुपकार गैंग के मुखियाओं का पिछले कितने ही दशकों से व्यवसाय सा बन चुका था। 5 अगस्त 2019 को धारा 370 व 35A के निराकरण व विलय होने के पश्चात ही इन सबके घाड़ियाली आंसू बहने प्रारम्भ हो गए।
यह विडम्बना नहीं तो क्या है कि गुपकार संसदीय प्रक्रिया से निकलकर बने हुए संवैधानिक क़ानून को भी मानने को तैयार नहीं है, अपितु उसकी मान्यता व वैधता पर सुप्रीम कोर्ट की दुत्कार के पश्चात पड़ोसी दुश्मन राष्ट्रों चीन व पाकिस्तान से भी सहायता मांग कर पूरे राष्ट्र को शर्मिंदा कर रहा है। जैसा श्री मद भागवत गीता में भी कहा गया है कि –
संभावितस्य चाकीर्ति
मरणादति रिच्यते
अर्थात – अपकीर्ति मरने से भी बतदर है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का तो इतिहास साक्षी रहा है कि उसने कई बार राष्ट्र के साथ कुठाराघात करते हुए उसे घुन की तरह ग्रसित किया है। आज सोशल मीडिया के माध्यम से कांग्रेस की 130 करोड़ भारतवासियों के सामने कलई खुल गयी है। शायद यही कारण है कि भारतवर्ष की जनता बहुत ही समझदार, संवेदनशील व जागरूक के साथ-साथ अपने देश की सीमाओं व राष्ट्र के विकास के लिए भी अत्यधिक विचारशील रहती है। अगर किसी राजनैतिक दल की सफलता का पैमाना उसकी चुनाव में सफलता व सरकार में आने को बना लिया जाए तो कांग्रेस के रिपोर्ट कॉर्ड में लाल पेन से बहुत बड़े-बड़े कक्षरो में असफल या अनुत्तीर्ण लिखा नज़र आ सकता है।
कांग्रेस पार्टी के लम्बे समय का भ्रष्टाचार युक्त शासन, सीमाओं के अतिक्रमण पर लचीला दृष्टिकोण, एक ही परिवार की चाटुकारिता व देश के ख़ज़ाने को खाली करके अपनी जेबों को भरना उसकी असफलता के कुछ कारण है। ऐसा हमारे केने उपनिषद में वर्णित हैं–
‘’न जातुकाम: कामानामुपभोगेन शाम्यति”
कामनाओं के उपभोग से कामनाए शांत नहीं होती एक ही पार्टी अथवा परिवार का देश पर 40–45 वर्षों तक राज करना व और धन और शासन करते रहने की भावना तर्कसंगत नहीं है। अब समय आ गया है। किसी भी राजनीतिक दल का कच्चा चिट्ठा आम व्यक्ति से छुपा नहीं है इस सबका श्रेय सोशल मीडिया व सजग मीडिया को भी जाता है।
वास्तव में गुपकार गैंग से कांग्रेस जैसी पार्टी का सम्बंध होना कोई अजूबा नहीं है। जिस तरह से पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस आदि पार्टियों का भारतीयता, राष्ट्रीयता व राष्ट्रप्रेम से कोई लेना देना नहीं है वैसे ही आज की कांग्रेस पार्टी भी नेतृत्वहीन, अध्यक्षहीन व दिशाहीन मां, बेटा, बेटी व दामाद का एक कुनबा मात्र ही रह गयी है। कांग्रेस पार्टी की इस दुर्दशा पर राजनीतिक गलियारों से असहाय वरिष्ठ कांग्रेसी मठाधीशों की बेबस रुदाली की ध्वनि और गहरी होती जा रही है। जो कि भारतीय लोकतंत्र के लिए एक दुखद समय है।
(लेखक संजीव उनियल उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)