चकाचक स्कूल। स्मार्ट क्लासरूम। रंग बिरंगे बाउंड्री वाल। हरे भरे मैदान। साफ सुथरे टायलेट्स। स्कूल यूनिफॉर्फ में बच्चे। ये उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के कक्षा एक से आठ तक के सरकारी स्कूलों यानी परिषदीय विद्यालयों की नई तस्वीर है। प्रदेश सरकार के ऑपरेशन कायाकल्प के तहत वाराणसी जिले के 1043 स्कूलों का कायापटल हो गया है। वाराणसी जिला कायाकल्प योजना के तहत 100 फीसदी उपलब्धि हासिल करने वाला उत्तर प्रदेश का पहला जिला बन गया है। पढ़िए संध्या की ये रिपोर्ट।
कायाकल्प परिषदीय विद्यालयों में सुधार के लिए लाई गई योजना है। उत्तर प्रदेश में कक्षा एक से आठ तक के सरकारी स्कूल परिषदीय विद्यालय के तहत आते हैं। इस योजना के तहत स्कूलों के कायाकल्प के लिए 18 मानक तय किए हैं। योजना में स्कूल के बाउंड्री वाल से लेकर साफ-सफाई, कक्षा मे बैठने के लिए फर्नीचर समेत सभी 18 मानकों पर खरा उतरना होता है।
जिले के मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल बताते हैं कि एक साल की छोटी सी अवधि में वाराणसी ने कायाकल्प योजना के तहत सभी 1043 स्कूलों की सूरत बदल गई है। कक्षा एक से आठ तक के परिषदीय विद्यालय अब स्मार्ट स्कूल बन गए हैं। इस बड़ी उपलब्धि की हासिल करने में जिला प्रशासन का समर्पित प्रयास तो रहा है। सरकार की दूसरी एजेंसियों और पीएसयू समेत कई निजी कंपनियों भी वाराणसी के परिषदीय विद्यालय में सुधार के लिए बढ़-चढ़कर योगदान दिया।
आईसीआईसीआई फाउंडेशन ने स्कूलों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए। वेदांता फाउंडेशन ने 200 स्कूलों के लिए 5 हजार बेंच दिए। नार्दर्न कोलफील्ड ने 300 स्कूलों में बेच उपलब्ध कराने की स्वीकृति दी है। स्कूलों में जो काम ग्राम पंचायतों के माध्यम से हो सकते थे, वे काम ग्राम पंचायत के जरिए कराए गए। बाउंड्री वाल की मरम्मत और निर्माण नरेगा के माध्यम से कराए गए। स्कूलों के कायांतरण में वाराणसी विकास प्राधिकरण की भी मदद ली गई। शहरी स्कूलों के भवनों की मरम्मत और सौंदर्यीकरण के कार्य विकास प्राधिकरण के फंड से हुए। सभी 1043 स्कूलों में लाइब्रेरी बना दी गई है। 500 स्कूलों में साइंस लैब बन गई है। करीब 20 स्कूलों में स्पेस लैब हैं। कंप्यूटर लैब भी बन रहे हैं।
सभी 1043 स्कूल स्मार्ट क्लास से लैस हैं। इसमें क्लास में स्मार्ट टीवी लगा होता है। इसके जरिए बच्चों को पढ़ाया जाता है। पाठ्य सामग्री कहानी और फिजिकल रिप्रेजेंटेशन के जरिए दिखाई जाती है। स्मार्ट टीवी के लिए इंटरनेट कनेक्शन की भी जरूरत नहीं होती। एक डिवाइस के जरिए ये कार्य आसानी से हो जाता है। इस डिवाइस की लागत 4 से पांच हजार रुपये आती है। संपर्क फाउंडेशन ने सभी 1043 विद्यालयों में निशुल्क इस डिवाइस को उपलब्ध कराया है।
स्कूलों की दशा बदली तो इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए। स्कूलों में बच्चों की संख्या भी बढ़ी। प्रदेश भर के परिषदीय विद्यालयों में सर्वाधिक बच्चों का नामांकन वाराणसी के स्कूलों में रहा है। करीब 11 हजार नए बच्चों का नामांकन हुआ। बच्चों की उपस्थिति के मामले में भी वाराणसी पूरे प्रदेश में अव्वल रहा। यहां के परिषदीय स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति का औसत 70 फीसदी से ऊपर पहुंच रहा है।
बच्चे पढ़ाई में भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की योग्यता परखने के लिए निपुण एसेंसमेंट का इस्तेमाल किया जाता है। निपुण एसेंसमेंट टेस्ट में वाराणसी के बच्चों का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है। इस टेस्ट में 76 फीसदी बच्चे ए या बी कैटेगरी में हैं।
वाराणसी के परिषदीय विद्यालय अब सिर्फ कक्षा की पढ़ाई तक सीमित नहीं है। अभी से बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किया जा रहा है। छठी क्लास से ही आईआईटी मद्रास के एक कार्यक्रम के जरिए उनकी कक्षा के मुताबिक नीट और जेईई की बेसिक तैयारी कराई जाती हैं। ये कक्षाएं शाम को चलती हैं। इसके लिए एक कोऑर्डिनेटर नियुक्त होता है। पढ़ाई आईआईटी मद्रास से सैटेलाइट के जरिए कराई जाती है।
वाराणसी के मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल बताते हैं कि वाराणसी में काशी तमिल संगमम में हिस्सा लेने आईआईटी मद्रास के डायरेक्टर आए। उन्होंने जिला प्रशासन से बातचीत में जानकारी दी कि उनके यहां नीट और जेईई की तैयारी कराने वाला बेसिक कार्यक्रम संचालित किया जाता है। वाराणसी जिला प्रशासन ने इसमें रूचि जताई। अब वाराणसी के परिषदीय विद्यालयों के बच्चों की ये सुविधा मिल रही है। ये पढ़ाई पूरी तरह से निशुल्क होती है।
वाराणसी जिला प्रशासन की कोशिशों से जिले के सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल गई है। स्कूलों की ओर बच्चों का रुझान बढ़ा है। आने वाले दिनों में अगर ये स्कूल पढ़ाई के मामले में पब्लिक स्कूलों को पछाड़ते नजर आएं तो हैरानी नहीं होगी। वैसे भी वाराणसी के परिषदीय विद्यालय और इनके बच्चे सफलता की नई कहानी गढ़ते नजर आएंगे।