नैना अग्रवाल, ये नाम है राजस्थान की पहली महिला कैंसर सर्जन का। नैना को राजस्थान की पहली महिला कैंसर सर्जन बनने का गौरव मिला है। उन्होंने ये गौरव स्वयं के परिश्रम और उससे भी बढ़कर खुद पर किए भरोसे से हासिल किया है। एक लड़की का सर्जन बनना और उसके बाद कैंसर सर्जरी में विशेषज्ञता हासिल करना इतना आसान नहीं था।
सर्जन बनने की इच्छा नैना के मन में एमबीबीएस की पढ़ाई की दूसरे साल ही पैदा गई थी। 2011 में मेडिकल की प्रवेश परीक्षा दी। उन दिनों हर राज्य में मेडिकल एडमिशन की अलग-अलग परीक्षा होती थी। राजस्थान की परीक्षा में नैना की दूसरी रैंक थी। ऑल इंडिया परीक्षा में उनका चयन एम्स के लिए हुआ। लेकिन उन्होंने जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज को चुना। नैना बताती हैं कि एमबीबीएस की पढ़ाई के दूसरे साल बतौर स्टूडेंट पहली पोस्टिंग सर्जरी वार्ड में लगी। वहां ब्रेस्ट कैंसर के पेशेंट देखे। बस उसी दिन तय हो गया। मुझे तो यही करना है। मुझे सर्जन बनना है।
एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी होते ही नैना का चयन पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स के लिए हो गया। हालांकि नैना ने तो तय कर रखा था कि सर्जन बनना है। भले ही आज मेडिकल प्रोफेशन में लड़कियां बहुतायत में हैं, लेकिन सर्जरी में लड़कियां कम ही आती हैं। आम धारणा है कि लड़की है तो गायनी में स्पेशलाइजेशन कर ले। नैना को भी इसी तरह की बिन मांगी सलाह मिल रही थी। एकबारगी वो भी दुविधा का शिकार हो गई। दुनिया की सुने या मन की माने। तब नैना की नानी ने उनको इस पशोपेश से बाहर निकाला। उन्होंने नैना का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि तेरे हाथ सर्जन के हैं, तुझे सर्जन ही बनना है।
नैना बताती हैं कि सर्जरी का पहला साल काफी टफ था। 23 बच्चों में सिर्फ 2 लड़कियां थी। 48 घंटे की ड्यूटी लगती। दो-दो दिन सोने को नहीं मिलता। कई बार हौंसला टूटने को होता। लेकिन अंदर का लड़ने का जज्बा एक फिर नया हौंसला देता। ये बाद में समझ में आया कि इस कड़ी ट्रेनिंग का लक्ष्य ही सर्जन को टफ बनाना होता है। कई बार कई-कई घंटे सर्जरी चलती है। केस सर्जरी के दौरान इतना क्रिटिकल हो जाता है कि धैर्य और टफ ना हो तो पेशेंट की जान बचाना मुश्किल हो जाए।
तीन साल की सर्जरी कोर्स पूरा होते ही नैना का चयन सर्जरी के स्पेसलाइजेशन कोर्स एमसीएच में हो गया। नैना ने एक बार फिर सर्जरी में ऐसा स्पेशलाइजेशन चुना जिसे अब तक राजस्थान में किसी लड़की ने नहीं चुना था। उन्होंने कैंसर सर्जरी में स्पेशलाइजेशन का निर्णय लिया। कैंसर सर्जरी मेंटली बहुत टफ ब्रांच है। अब तक राजस्थान में किसी लड़की ने कैंसर सर्जरी का चयन नहीं किया था। लेकिन नैना हमेशा से कैंसर सर्जन ही बनना चाहती थी।
नैना बताती हैं कि सर्जरी में जब भी कैंसर का पेशेंट आता था तो उन्हें लगता था कि इस पेशेंट का पूरा इलाज होना चाहिए। उसे बीमारी से जुड़ी सारी जानकारी, सारे इलाज, सारे ऐहतियात पता होने चाहिए। इससे भी बढ़कर उसके अंदर भरोसा पैदा करना होता है कि कैंसर का भी इलाज संभव है। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर के पास कई बार इतना वक्त नहीं होता कि पेशेंट को पूरा समझा पाए। कैंसर का पेशेंट भी इमोशनली इस हद तक टूट चुका होता है कि कई बार डॉक्टर की बात समझना नहीं चाहता। लेकिन मैंने तय किया कि मेरे पास जो भी पेशेंट आए उसे मैं सब समझाकर भेजूं। जो मेरे पास पेशेंट आए उसे समझाकर भेजूं।
इसी जनवरी में कैंसर सर्जरी का तीन साल का कोर्स पूरा कर नैना बतौर असिस्टेंस प्रोफेसर ज्वाइन कर लिया है। नैना बताती हैं कि कैंसर पेशेंट को बताना बहुत मुश्किल होता है। उसे लगता है कि मेरी दुनिया ही खत्म हो गई। हमारा काम इलाज के साथ उसे भरोसा दिलाना होता है कि कुछ भी असंभव नहीं है। मैं खुद हर पेशेंट से बात करती हूं। कई बार उनके मनोभाव ऐसे होते हैं कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कई पेशेंट खासकर महिलाएं ऐसी आती हैं जिन्हें खुद से ज्यादा परिवार की चिता होती है। मैं हर किसी को यही भरोसा दिलाती हूं कि कैंसर के कई मामलों में इलाज पूरी तरह संभव है। बस सही तरीके और इलाज को फॉलो करना है। साथ ही अंदर की मजबूती और सकारात्मकता इलाज से भी ज्यादा जरूरी है।
नैना राजस्थान की पहली महिला कैंसर सर्जन बन चुकी हैं। उन्होंने ये उपलब्धि ऐसे परिवार में रहकर हासिल की। जिस परिवार में कोई भी चिकित्सक नहीं था। पिता व्यवसायी और मां हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं। मौसी पुलिस में हैं। नैना बताती हैं कि वे अपनी नानी के बहुत करीब थी। उनकी नानी गृहणी थी, बचपन में उनकी इच्छा डॉक्टर बनने की थी। लेकिन उस दौर में उनकी इच्छा पूरी ना पायी। उन्होंने बेटियों की पढ़ाई पर खूब ध्यान दिया और नैना के डॉक्टर बनने की पीछे नानी की ही प्रेरणा थी। अब नैना के नक्शे कदम पर चलकर उनके छोटे भाई अर्जुन भी डॉक्टर बन चुके हैं। अर्जुन एम्स में एमडी मेडिसिन के तृतीय वर्ष के स्टूडेंट हैं।
डॉ. नैना अग्रवाल की सफलता बताती है कि अगर आप कुछ भी ठान ले तो परिस्थितियां कैसी भी प्रतिकूल हों, हालात कितने भी बुरे हों, उसे पूरा करना आपके हाथ में है। आखिर नानी ने भी तो यही कहा था।