खेती किसानी भी कमाई का धंधा और सैकड़ों लोग को रोजगार भी दे सकता है। देश के पिछड़े राज्यों में से एक छत्तीसगढ़ के कोंडागांव के किसान डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने इसे साबित किया है। छत्तीसगढ़ की यात्रा के दौरान डॉ. राजाराम त्रिपाठी के खेती किसानी को करीब से देखने वाले युवा पत्रकार आशुतोष पाण्डेय की रिपोर्ट
जब खेती-किसानी में लोगों की रुचि घट गई है। इसे घाटे का काम माना जाता है। युवा खेती छोड़ कमाई की चाह में शहरों की ओर पलायन कर रहा है। इसी दौर में छत्तीसगढ़ के कोंडागांव के किसान डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने ये साबित किया है कि खेती से अच्छी कमाई की जा सकती है। खुद के साथ कई लोगों को रोजगार भी दिया जा सकता है। डॉ. त्रिपाठी ने औषधीय खेती के जरिए भारत सहित दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। मेहनत और प्रयोगधर्मी स्वभाव के कारण वह देश के धनी किसानों में गिने जाते हैं। उनके कृषि उत्पाद दुनिया के बाजार में भारत का मान बढ़ा रहे हैं।
डॉ. राजाराम त्रिपाठी के खेतों में धान, गेहूं, गन्ने की बजाय विशालकाय हरे-भरे ऑस्ट्रेलियन टीक के पेड़ दिखाई देते हैं। पहली नजर में देखने से ये लगता है कि ये कैसी खेती है? नजदीक से देखने पर हर कोई हैरान रह जाता है। इन पेड़ों पर काला सोना यानी काली मिर्च की सुंदर लताएं दिखाई देंगी। डॉ. त्रिपाठी कालीमिर्च की खेती से लाखों की कमाई कर रहे हैं। वे सिर्फ स्वयं खेती नहीं करते बल्कि दूसरे किसानों को कालीमिर्च व अन्य औषधियों की खेती से जुड़ी बारिकियों से भी अगवत कराते हैं। वे किसानों को समझाते हैं, किसानी भी लाभकारी हो सकता है।
देश-विदेश के कोने-कोने से किसान व कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजाराम त्रिपाठी के फार्म पर खेती किसानी को देखने आते हैं। उनका फार्म किसानी का धाम बन गया है।
डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने भारतीय कृषि की बनी बनाई लीक को तोड़ा है। वैज्ञानिक तत्व निहित खेती और उसकी लाभदायकता को परिभाषित किया है। उन्होंने विलुप्त हो रही जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया है। विलुप्तप्राय दुर्लभ वनौषधियों के प्राकृतिक रहवास में लिए ‘इथिनो मेडिको गार्डेन’ के रूप में देश का पहला मानवनिर्मित हर्बल फॉरेस्ट भी विकसित किया है। इस फॉरेस्ट में विलुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण और संवर्धन किया जाता है।
छत्तीसगढ़ के अति पिछड़े व अतिसंवेदनशील क्षेत्र के रूप में बस्तर को जाना जाता है। डॉ त्रिपाठी इसी बस्तर में जन्मे और पले बढ़े। इस पिछड़े इलाके में उन्होंने उम्मीद की एक नई पौध का रोपण किया है। बस्तर के 700 से अधिक आदिवासी परिवार ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ के साथ हर्बल फार्मिंग से जुड़कर आजीविका चला रहे हैं। सात ही भारत की विरासत जड़ी-बुटियों को संजो रहे हैं। सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन के माध्यम से देश के 50 हजार से अधिक आर्गेनिक फार्मर्स डॉ. त्रिपाठी के इस अभियान में कदमताल कर रहे हैं।
खेती किसानों के साथ डॉ. राजाराम त्रिपाठी को पढ़ने-लिखने का भी खूब शौक है। साइंस ग्रेजुएट, लॉ की डिग्री के साथ हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान सहित पांच विषयों में पोस्ट ग्रेजुएशन और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त डॉ त्रिपाठी को देश का सबसे ज्यादा शिक्षा प्राप्त किसान माना जाता है।
डॉ. त्रिपाठी देश के 45 किसान संगठनों के महासंघ “अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)” के राष्ट्रीय संयोजक हैं। हाल ही में देश के अग्रणी 223 किसान संगठनों के ‘’एमएसपी गारंटी-किसान मोर्चा” का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया है। उनके नेतृत्व में ‘मां दंतेश्वरी हर्बल’ को देश के पहला आर्गेनिक (जैविक) सर्टिफाइड उत्पाद बनाने वाले कृषक समूह के रूप में 22 साल पहले वर्ष 2000 में मान्यता मिली। दो दशक से वे अपने उत्पादों का यूरोप, अमेरिका सहित कई देशों में निर्यात भी कर रहे हैं। वहां इसे काफी पसंद भी किया जा रहा है। उन्हें बेस्ट एक्सपोर्टर का अवार्ड भी मिल चुका है। उन्होंने भारत सरकार के सर्वोच्च शोध संस्थान संगठन सीएसआईआर के साथ स्टिविया की खेती का करार किया है। ये करार स्टीविया को पूरी तरह से कड़वाहट रहित और स्टिविया से 250 गुना मीठा शक्कर बनाने के लिए कारखाना लगाने के लिए किया है।
हर्बल या आर्गेनिक व्यवसाय से जुड़ी देश की बड़ी कंपनियां जंगली जड़ी-बूटियों का भारी मात्रा में दोहन कर रही हैं। लेकिन उनके संरक्षण की दिशा में उनका योगदान नगण्य है। इसकी वजह से जुड़ी बुटियों की ढेर सारी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है। ऐसी विलुप्त हो रही जुड़ी-बुटियों को संरक्षित करने का कार्य वे कर रहे हैं। उनके इन योगदान को देखते हुए उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कार मिले हैं।
उन्होंने पूर्णता जैविक पद्धति से देश के हर भाग में न्यूनतम देखभाल के साथ खेती करने योग्य एवं परंपरागत प्रजातियों से ज्यादा उत्पादन देने वाली और बेहतर गुणवत्ता की 1-कालीमिर्च की नई प्रजाति “मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16, पीपली की नई प्रजाति”मां दंतेश्वरी पीपली -16” एवं स्टीविया की नई प्रजाति “मां दंतेश्वरी स्टीविया-16 आदि प्रजातियों का विकास भी किया है। वे देश के पहले ऐसे किसान हैं। जिन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ किसान होने का अवार्ड तीन-तीन बार, भारत सरकार के कृषि मंत्री के हाथों मिल चुका है। अब तक देश-विदेश से उन्हें 150 से अधिक अवार्ड मिले हैं।
डॉ. राजाराम त्रिपाठी कहते हैं कि 30 सालों के सतत साधना, संघर्ष के बाद उपलब्धि और क्षेत्र के लोगों की जीवन में परिवर्तन के पीछे सिर्फ मेरी मेहनत नहीं रही है, बल्कि मेरे परिवार मेरी पत्नी, मेरे सातों भाइयों, गुरुजनों, मित्रों तथा अनेकों माननीय व्यक्तियों के साथ ही आंचल के सैकड़ों आदिवासी भाइयों का साथ और विश्वास, सभी का सतत सहयोग, संबल तथा शुभकामनाएं रहीं हैं।
डॉ. राजाराम त्रिपाठी की सफलता बताती है कि अगर ठान लिया जाए तो पिछड़े से पिछड़े इलाके और सबसे बेकार मांने जाने वालों कार्यों में भी सफलता के नए प्रतिमान बनाए जा सकते हैं। इससे सैकड़ों लोगों की जीवन संवर सकता है। बदलता इंडिया की कामना है कि डॉ. राजाराम त्रिपाठी की सफलता की कहानियों से दूसरे लोग भी प्रेरणा लेकर खुद, परिवार और इलाके की किस्मत बदलें।