शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान की 29 अगस्त 2023 को सामने आयी एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि वायु प्रदूषण से दिल्ली में जीवन अवधि 12 साल कम हो सकती है
प्रोफ़ेसर जी सी खिलनानी
लंदन में कोहरे के कारण जब 1952 में 12,000 लोगों की मौत हुई तब विकसित देशों ने औद्योगिकीकरण (मुख्य रूप से कोयला जलाना) के परिणामस्वरूप खराब वायु गुणवत्ता की वजह से आए इस भयावह खतरे का संज्ञान लिया।
आज हालात ये हैं कि दुनिया में वायु प्रदूषण से संबंधित रोगों और मृत्यु दर का एक बड़ा हिस्सा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में होता है। दिल्ली, जिसे ‘वायु प्रदूषण की राजधानी’ कहा जाता है, में PM 2.5 WHO के मानकों (5 ug/m3) से 25 गुना अधिक है। यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि एक समय विकसित देश (कैलिफोर्निया राज्य सहित) भी भारत की तरह प्रदूषित थे। लेकिन विकसित देशों में इससे निपटने के लिए सख्त उपाय किए गए। इसलिए वाहनों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि के बावजूद PM 2.5 लगभग प्रति घन मीटर हवा में 10 माइक्रोग्राम (10 ug/m3) बना हुआ है।
स्वच्छ वायु अधिनियम पारित होने के साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका में, प्रदूषण में 64.9 प्रतिशत की कमी आई। चीन एक और उदाहरण है। यहां वर्ष 2013 से वायु प्रदूषण में 43.3% की कमी आई है। इसका असर सीधे-सीधे जीनव प्रत्याशा पर बढ़ा है। और चीन में प्रदूषण में कमी के कारण जीवन प्रत्याशा में 2.2 वर्ष की वृद्धि हुई है।
भारत में वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत ऑटोमोबाइल वाहन, उद्योग (लघु उद्योग सहित) तथा असंगठित निर्माण और जीवाश्म ईंधन (घर के अंदर उपयोग सहित) हैं। ये सभी ‘मानव निर्मित’ हैं। ऐसे में कड़े उपायों और प्रतिबंधों के साथ वायु प्रदूषण को कम करना संभव है। इसमें उन उपायों का कार्यान्वयन शामिल है, जो किसी से छिपे नहीं है।
एक पल्मोनोलॉजिस्ट के रूप में, मैं ऐसे कई रोगियों को देखता हूं, जिन्हें मामूली वायरल बीमारी के बाद लंबे समय तक खांसी रहती है। ये सांस फूलने और घरघराहट से जुड़ी होती है। इसमें दवाएं अप्रभावी होती हैं। कई बार वायुमार्ग की सूजन को नियंत्रित करने के लिए ऑर्टिकोस्टेरॉइड की आवश्यकता होती है।
वायरल बीमारी के बाद मृत्यु दर बढ़ाने में वायु प्रदूषण की भूमिका स्पष्ट रूप से तब प्रदर्शित हुई जब उत्तरी इटली में मृत्यु दर दक्षिणी इटली (कम प्रदूषित) की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक थी।
30 साल पहले घर में नेबुलाइजेशन मशीन एक दुर्लभ वस्तु थी और अब दिल्ली के घरों में नेबुलाइजेशन मशीन होना आम बात है, खासकर अगर घर में बच्चे या बुजुर्ग हों। इस बात पर ज़ोर देना ज़रूरी है कि ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि एयर प्यूरीफायर या मास्क का उपयोग हमें प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों से बचाता है।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि वायु प्रदूषण की कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं है। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने PM2.5 के वायु गुणवत्ता मानक को घटाकर प्रति घन मीटर हवा में 5 माइक्रोग्राम (5 ug/m3) कर दिया है (भारतीय मानक 40ug/m3 है)।
सरकारी नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण है। ये बहुत अच्छे से वर्णित हैं। हम भारत के नागरिकों की सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस खतरे को नियंत्रित करने अपनी भूमिका का ईमानदारी से निर्वाह करें।
(लेखक प्रोफ़ेसर जी सी खिलनानी पीएसआरआई इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के अध्यक्ष हैं। दिल्ली एम्स में पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेड मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख रह चुके हैं। डब्ल्यूएचओ ग्लोबल एयर पॉल्यूशन एंड हेल्थ के तकनीकी सलाहकार समूह के सदस्य हैं।)