गोरखपुर के गौरव से मिलिए, एजुकेशन लोन चुकाने को नहीं था पैसा लेकिन IPS में सेलेक्शन लेकर पूरा किया सपना

Gaurav Tripathi 1

गोरखपुर के गौरव त्रिपाठी का बचपन से एक ही जुनून था यूपीएससी में सेलेक्शन। जिद ऐसी कि आईआईटी रुड़की के प्लेसमेंट में ही शामिल नहीं हुए। नौकरी ना करने का नतीजा एजुकेशन लोन एनपीए हो गया। लेकिन इस मुफलिसी में भी जज्बा ऐसा कि सेलेक्शन लेकर ही माने। गोरखपुर के एक छोटे से मोहल्ले से आईआईटी रुड़की होते हुए आईपीएस बनने के जिद, जुनून और जज्बे की कहानी खुद जानिए IPS गौरव त्रिपाठी की जुबानी।

 

पिताजी भारतीय सेना में थे। 17 वर्ष की नौकरी पूरी कर लेने के बाद उनके पास प्रमोशन या रिटायर हो जाने का विकल्प था। पिताजी ने रिटायर होने का फैसला किया। उन्होंने तय किया कि अब परिवार और बच्चों के साथ वक्त बिताना है। उनके रिटायर होने के साथ हम लोग राजस्थान के कोटा से उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के गांव मनिहरपुर चले आये। आप सब सोच रहे होंगे कि मैं ये सब क्यों बता रहा? असल में अतील में हुए इसी बदलाव ने ऐसी परिस्थितियां पैदा की जिसकी वजह से मेरा वर्तमान है।

 

गोरखपुर से सफर की शुरुआत

 

हम गांव तो आ गए। लेकिन उन दिनों गांव का माहौल बहुत ख़राब था। लड़ाई-झगड़ा, नशाख़ोरी, चोरी आदि आम बात थी। संपत्ति के रूप में पिताजी के पास उनके तीन बच्चे छोटू, गोलू और पल्लव थे। इस संपत्ति को सहेजने के प्रयासों में मेरी मां को लगा कि ऐसे माहौल में तो बच्चे कहीं के नहीं रहेंगे। उन्होंने पिताजी से बात की ताकि पास के शहर में बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके। हम सब गोरखपुर आ गए। यहां आजीविका के लिए पिताजी ने किराना की दुकान खोल ली। हम सब भी पढ़ाई के साथ दुकान भी संभालते।

 

 

किराने की दुकान पर मिला लक्ष्य

 

हालांकि दुकान बैठकर पंचायत करने की जगह अधिक बन गई थी। कॉलोनी के लोग ज्यादातर दुकान पर आने वाले कई तरह के न्यूज़पेपर पढ़ने आते थे। खबरों पर चर्चा के अलावा बातचीत का विषय ये रहता था कि किसके बच्चे क्या कर रहे? ख़ास तौर पर जब रिज़ल्ट का महीना यानी मई-जून आता था तो यूपीएससी/पीसीएस और आईआईटी के रिज़ल्ट के बाद तो न्यूज़पेपर में हल्ला मच जाता था। सफल बच्चों के इंटरव्यू और पूरे समाज को उस पर बातचीत करते देख लगता था कि जीवन में सफल होने के लिए न्यूज़पेपर में नाम आना ज़रूरी है। यही सोच कर ये तय कर लिया था कि आईआईटी में जाना है और आईएएस या पीसीएस बनना है।

 

परिवार और बजरंगबली का साथ

 

ख़ुद की इच्छाशक्ति के साथ बजरंगबली की कृपा से ऐसा परिवार मिला जिसने कभी हिम्मत हारने ही नहीं दिया चाहे रिज़ल्ट पक्ष में न आ रहा हो या तैयारी का तनाव हो। सभी ने मिलजुल कर हर मामले में साथ दिया। बड़े भैया गाइड, मित्र और मार्गदर्शक की भूमिका में थे। हर ज़रूरी चीज उपलब्ध करवाते। छोटा भाई घर की देख-रेख, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के तानों से निपटने के लिए ढाल बनकर रहता था। मम्मी और पापा हर चीज का ध्यान रखते कि कुछ कमी न पड़ जाए। ये और इतने अच्छे दोस्त के समान थे की मैं कुछ भी इन लोग से शेयर कर सकता था।

 

 

IIT में चयन सफलता की पहली सीढ़ी

 

परिवार के सहयोग, नियम एवं अनुशासन के साथ पढ़ाई के कारण मेरा एडमिशन आईआईटी रुड़की में हो गया। ये मेरे जीवन की पहली सफलता रही। इसके बाद जैसा कि मैंने पहले ही मन बना लिया था कि आईएएस बनना है। मैं बार-बार आईएएस बोल रहा हूं तो मैं पूरी ज़िम्मेदारी के साथ यह मान रहा हूं कि हम जिस परिस्थिति और बैकग्राउंड से आते हैं वहां सिविल सेवा परीक्षा के बारे में कुछ नहीं पता था। बस इतना पता था कि एक परीक्षा होती है जिसे पासकर आईएएस-पीसीएस बनते हैं।

 

सफलता की राह का सबसे बड़ा संघर्ष 

 

कॉलेज के दौरान ही इंटरनेट के माध्यम से तैयारी शुरू कर दी थी। मैंने तैयारी इतनी मेहनत से की थी कि मुझे भरोसा हो गया था कि पहले प्रयास में मेरा चयन तय है। इसी आत्मविश्वास में मैंने कॉलेज प्लेसमेंट में भाग ही नहीं लिया। इस घटना ने आने वाले कई वर्षों तक मेरे ऊपर प्रभाव डाले रखा। हुआ ये कि मैंने कॉलेज की पढ़ाई बैंक से लोन लेकर की थी। मैं प्लेसमेंट में बैठा नहीं और पहले प्रयास में सिर्फ प्रीलिम्स ही पास कर सका। दूसरे प्रयास में साक्षात्कार तक पहुंचा। अब संकट वास्तविकता में बढ़ चुका था। कॉलेज ख़त्म हुए 2 साल बीत चुके थे। जेब में एक पैसा नहीं था। बैंक लोन NPA में जा चुका था। रिकवरी एजेंट रोज़ फ़ोन करके गाली-गलौज की करना आरंभ कर दिए थे। अब आत्मविश्वास कुछ डोलने सा लगा था। सिविल सर्विस में आने का सपना धुंधला लगने लगा था। इसी समय दुनिया पर कोविड-19 की सबसे बड़ी आपदा आन पड़ी।

 

दोस्त बना अंधेरे में उम्मीद की किरण

 

ये मेरे जीवन का सबसे निराशाजनक दौर था। मैंने मन बना लिया कि अब यूपीएससी की परीक्षा नहीं दूंगा। सबसे पहले जगह-जगह कोचिंग पढ़ाकर लोन चुकता करूंगा। ये बात मैंने आईआईटी के दिनों के रूममेट गौरव जिंदल से साझा की। गौरव उस समय यूएसए में नौकरी कर रहा था। जब लोग असफलता का मज़ाक़ बना रहे थे, गौरव जिंदल ने दोस्ती का सच्चा फर्ज निभाया। उसने मुझसे कहा कि तुम तैयारी करो, लोन की चिंता मत करो, उसे चुका दूंगा। कॉलेज के दिनों के उस दोस्त में एक ही बार में पूरा बैंक लोन चुकाकर मुझे फिर से पढ़ाई में जुट जाने को कहा।

 

 

यूपीएससी में सेलेक्शन की जिद

 

इसी बीच 2020 में मेरा उत्तर प्रदेश पीसीएस में चयन हुआ। लेकिन मुझे यूपीएससी के कुछ मंज़ूर नहीं था। इसीलिए मैंने वो नौकरी ज्वाइन ही नहीं की। यूपीएससी हिंदी के नाम से कोचिंग संस्थान खोल दिया। बड़े भैया सत्यप्रकाश और छोटे भाई पल्लव की अत्यधिक मेहनत और मेरे दो बार साक्षात्कार के अनुभव के कारण जल्दी ही यह कोचिंग बड़ा नाम बन गई। इससे हमारी आर्थिक स्थिति काफ़ी अच्छी हो गई। इस दौरान मैंने यूपीएससी की परीक्षा से एक वर्ष का गैप भी लिया ताकि अपनी कमियों पर काम कर सकूं।

 

बचपन का सपना हुआ पूरा

 

इस बार मेरा चौथा प्रयास था। मैंने इसे आख़िरी प्रयास माना। क्योंकि कोचिंग चलाना बहुत मेहनत का काम था। एग्जाम देने के कारण इसमें बहुत रुकावट आती। इस बार तैयारी भी कुछ ख़ास नहीं हो पायी ना ही ज़्यादा मॉक इंटरव्यू दे पाया। रिजल्ट के दिन मैं नीतिशास्त्र की क्लास पढ़ा रहा था। लेकिन मन बग़ल में रखे मोबाइल में अटका था। मोबाइल खोलकर मैं रिजल्ट के पीडीएफ़ का इंतज़ार कर रहा था। मन में द्वंद था कि एक बार फिर असफलता मिली तो सबको कितनी निराशा होगी। दोपहर एक बजे मोबाइल पर रिजल्ट का पीडीएफ़ आ गया। सर्च करते ही 226वें नंबर मुझे मेरे नाम दिख गया। बजरंगबली की जय चिल्लाते हुए मैं मम्मी के पास भागा। सारी असफलताओं का बोझ सिर से हट चुका था और मुझे मेरी मंज़िल यूपीएससी मिल चुकी थी। मेरा चयन आईपीएस के लिए हो चुका था।