सागर के युवा किसान आकाश ने ईजाद कर दिया बहुमंजिला खेती का कमाऊ मॉडल

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मध्य प्रदेश के सागर जिले के आकाश चौरसिया। कभी डॉक्टर बनने का सपना देखा। तैयारी भी की। आकाश डॉक्टर तो नहीं बने। लेकिन लोगों को बीमारियों से बचाने की उससे भी बड़ी मुहिम में जुट गए। बढ़ती बीमारियों के हालात को देखकर विषमुक्त अन्न और सब्जियां मुहैया कराने के लिए वे किसान बन गए। किसान बनकर उन्होंने बहुमंजिला खेती का बहुत ही अनोखा मॉडल विकसित कर दिया।

आज आकाश की पहचान देश-दुनिया में खेती का नया मॉडल विकसित करने वाले सफल किसान की है।

आकाश की सफलता की कहानी 2009 में संघर्ष से शुरू होती है। वह किसान बनने की तो ठान चुके थे। लेकिन पुश्तैनी जमीन सिर्फ एक एकड़ थी। इसमें भी कई हिस्सेदार थे, तो उन्होंने गांव में ही 10 डिसमिल जमीन किराए पर ली। खेती दिखने में आसान तो लगती है, लेकिन ये इतनी आसान होती नहीं। मौसम, पानी, खर-पतवार, कीड़े, जानवरों से सुरक्षा, उत्पादन, बाजार के रेट की चुनौतियों के बीच नए तरीके की खेती करने में जुट गए। इस बीच खेती करते उन्हें समझ आ गया था कि सिर्फ एक फसल से काम नहीं चलने वाला है।

 

 

कोई ऐसा तरीका तलाशना था, जिसमें कम जमीन में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन हो। इस बीच एक बार किसी काम से शहर आए। यहां की गगनचुंबी इमारतों से उन्हें एक आइडिया मिला। शहर में जगह की कमी की वजह से मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बनती है। कम खेती की जमीन में भी एक के एक ऊपर एक फसल उगा सकते हैं। परिवार के पान की ट्रेडिशनल फॉर्मिंग का नॉलेज और मल्टीस्टोरी बिल्डिंग से बहुमंजिला खेती का नया तरीका ईजाद कर लिया।

चार-पांच साल लगातार प्रयोग चला। 2014 में आकाश बहुमंजिला खेती का सफल मॉडल बनाने में कामयाब हो गए। उन्होंने इसे मल्टीलेयर फॉर्मिंग का नाम दिया।

क्या है चार मंजिला खेती

 

आकाश की मल्टीलेयर फॉर्मिग चार मंजिला होती है। पहले लेयर में जमीन के अंदर पैदा होने वाली अदरक, हल्दी, गाजर, प्याज, लहसुन आदि की फसल लगाते हैं। दूसरे लेयर में जमीन के ऊपर यानी सतह पर पैदा होने वाली सब्जियां पालक, धनिया आदि उगाते हैं। तीसरी लेयर खेत में बनाए गए ढांचे के ऊपर लता वाली फसलें जैसे करेला, कुंदरू आदि लगाते हैं। चौथी लेयर में पपीता, सहजन आदि फल वाली पैदावार ली जाती है।

 

खेत कैसे बनता है बहुमंजिला

 

मल्टीलेयर फॉर्मिंग के लिए पहले ढांचा बनाना पड़ता है। एक बार बनने के बाद ढांचा करीब पांच साल तक इस्तेमाल होता है। ढांचा बनाने के लिए सबसे पहले जमीन में एक से दो फीट गहरे डंडे लगाते हैं। ये करीब एक फीट ऊपर होते हैं। डंडों के बीच 5-6 फीट की दूरी पर सात फीट लंबा बांस लगाते हैं। बॉस की ऊपरी सहत पर पतले तार से ढांचा बना दिया जाता है। तारों के बीच आधा फीट का गैप होता है। इस पर घास बिछा देते हैं। घास के ऊपर लकड़ी डाल देते हैं। खेत की मेड़ पर चारों तरफ से ग्रीन नेट या साड़ी से बाऊंड्री वाल जैसा बना देते हैं।

 

 

एक समय में 60 फसल

 

एक ही खेत में कई फसल लगाते हैं। इनमें जमीन के अंदर अदरक, हल्दी, प्याज, लहसुन, चुकंदर, गाजर, मूली आदि, जमीन के ऊपर पालक, मेथी, चौलाई, धनिया, परवल, कुंदरू, पपीता, सहजन आदि फसलें उगाते हैं। आकाश आमतौर पर एक समय में एक खेत में 40 से 45 फसलों की पैदावार लेते हैं। हालांकि एक ही खेत में अधिकतम 60 फसलों की पैदावार ले चुके हैं।

 

बहुमंजिला खेती के फायदे

 

बहुमंजिला खेती से लागत करीब चार गुना कम हो जाती है। जबकि मुनाफा उसी अनुपात में बढ़ जाता है। इसमें 70 से 75 फीसदी पानी की बचत होती है। खेत में ज्यादा जगह बची न होने से खरपतवार भी कम उगती है। कीड़े काफी हद तक कम लगते हैं। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। मिट्टी का कार्बन प्रतिशत बढ़ता है। साथ ही मिट्टी मुलायम होने से जलधारण क्षमता भी बढ़ जाती है।

 

मौसम परिवर्तन का असर भी इस मॉडल की खेती पर कम पड़ता है। छोटे जानवरों से फसलों का बचाव होता है। सिर्फ सामान्य प्रशिक्षण के बाद किसान खेती के इस मॉडल को खुद बना सकता है। इस मॉडल की खेती में लागत कम कर लगती है और आय चार गुना बढ़ जाती है।

इस मॉडल को बनाने में जो भी सामान लगता है, सब खेत में ही मिल जाता है। ये स्वालंबी, वायबल, बायोडिस्पोजल मॉडल है।

गोबर के खाद को बढ़ावा

 

आकाश जैविक खेती को बढ़ावा देते हैं। भारतीय नस्ल की गौवंश के पालन के साथ गोबर की खाद को बढ़ावा देते हैं। गाय इस खेती का केंद्र है। आकाश बताते हैं कि गाय इस मॉडल में बहुत लाभप्रद है। खेतों में पैदा होने वाले खरपतवार और फसलों का अवशिष्ट ही गाय का चारा होता है। गाय दूध तो देती है, साथ ही गोबर खेतों में खाद के तौर पर इस्तेमाल हो जाता है। गाय खेती को आत्मनिर्भर बनाती है। खेती का खर्चा कम होता है। खाद खरीदने के लिए भी कही नहीं जाना होता। घर ही खाद के लिए गोबर मिल जाता है।

 

 

खेती से कितनी कमाई

आकाश ने करीब 10 डिसमिल से खेती की शुरुआत की। 10 डिसमिल यानी एक एकड़ का दसवां हिस्सा होता है। अब करीब 28 एकड़ में खेती कर रहे हैं। सालाना औसत टर्नओवर करीब 45 से 50 लाख है। खेती के कार्यों में मदद के लिए करीब 18 लोगों की टीम है।

 

बहुमंजिला खेती की ट्रेनिंग 

 

आकाश की मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक की सफलता का आलम ये है कि देश-विदेश से लोग इस तकनीक के देखने-सीखने-समझने आते हैं। आकाश ट्रेनिंग देने के लिए पांच देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। ये देश के लिए गौरव का विषय है, खेती की तकनीक सीखने लोग भारत आते हैं। आकाश बताते हैं कि अगर खेती को लाभप्रद बना दिया जाए तो गांवों से पलायन रुक जाएगा।

 

आकाश को डॉक्टर न बनने का कोई रंज नहीं है। छोटी जोत से खेती शुरू करके उन्होंने दिखा दिया कि हौसला और जुनून हो तो खेती को आत्मनिर्भर और कमाऊ बनाया जा सकता है।