विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर विशेष:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने तम्बाकू महामारी की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने के लिए 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस बनाया। तंबाकू सेवन से होने वाली मौतों का आंकड़ा बहुत ही भयावह है। दुनिया भर में हर साल 6.7 मिलियन से अधिक लोग तम्बाकू के सेवन के कारण मरते हैं। जबकि 1.3 मिलियन लोग सेकेंड हैंड स्मोक के कारण मरते हैं।
भारत में हर साल 1.35 मिलियन लोग तंबाकू जनित बीमारियों के कारण मरते हैं। भारी धूम्रपान करने वालों यानी एक दिन में 20 से अधिक सिगरेट पीने वालों में जीवन प्रत्याशा का नुकसान औसतन 13 वर्ष का है और इनमें से 23 फीसदी 65 वर्ष की आयु तक नहीं पहुंच पाते हैं।
तंबाकू सेवन से न सिर्फ जीवन प्रत्याशा कम होती है बल्कि तंबाकू जनित बीमारियों जैसे ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी, दिल के दौरे, सभी अंगों के कैंसर, स्ट्रोक और अन्य के कारण जीवन की गुणवत्ता भी गंभीर रूप से प्रभावित होती है। विडंबना यह है कि अधिकांश धूम्रपान करने वाले, धूम्रपान के दुष्प्रभावों को जानते हुए या धूम्रपान से संबंधित बीमारियों से पीड़ित होने के बावजूद, निकोटीन की लत के कारण इसे छोड़ नहीं पाते हैं।
विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वर्ष बच्चों को ध्यान में रखकर थीम तय किया है। इस वर्ष का थीम है “बच्चों को तंबाकू उद्योग के हस्तक्षेप से बचाना”। यह वास्तव में उपयुक्त है। क्योंकि 10 में से 9 धूम्रपान करने वालों ने 18 वर्ष की आयु से पहले अपनी पहली सिगरेट पी है। जब तक वे इसके दुष्प्रभावों को समझते हैं या महसूस करते हैं, तब तक वे पहले से ही ‘व्यसनी’ बन चुके होते हैं। जीवन के बाकी समय के लिए इसे छोड़ने में असमर्थ होते हैं।
• धूम्रपान छोड़ने से तम्बाकू से संबंधित कैंसर, स्ट्रोक, हृदय रोग, मधुमेह, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और रूमेटाइड अर्थराइटिस की व्यापकता, रुग्णता और मृत्यु दर कम हो जाती है
धूम्रपान शुरू करने के कारण केवल साथियों का दबाव या ‘बस इसे आज़माना’ या निकोटिन के प्रभाव से नशे में होना होता है। इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (भारत में कानून द्वारा प्रतिबंधित) को सिगरेट पीने की आदत छुड़ाने में सहायता के लिए प्रचारित किया जाता है। लेकिन इससे धूम्रपान और निकोटीन की लत में इज़ाफा हुआ है। यूरोपीय देशों में 12.5 फीसदी किशोर इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट का सेवन कर रहे हैं। यही बात अमेरिका में मिडिल और हाई स्कूल के बच्चों के लिए भी सच है। इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट (वेपिंग), निकोटीन को सांस के ज़रिए लेने का एक तरीका है। इससे निकोटिन की लत लग जाती है, आखिर में ये सिगरेट पीने में परिणत होती है। दुर्भाग्य से, युवाओं की शाम की पार्टियों में वेपिंग एक जीवन शैली बन गई है।
एक पल्मोनोलॉजिस्ट के रूप में, मैं अपने रोगियों में तम्बाकू धूम्रपान की सभी जटिलताओं को देखता हूं। विडंबना यह है कि धूम्रपान से संबंधित बीमारी के कारण गंभीर लक्षणों और विकलांगता के बावजूद, वे धूम्रपान छोड़ने में असमर्थ हैं। इसलिए, युवा स्कूली बच्चों को उनकी शिक्षा के माध्यम से इस खतरे (सिगरेट और वेपिंग दोनों) से दूर रखना और उन तक इस खतरे को पहुंचाना महत्वपूर्ण है।
सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध और विज्ञापनों (खतरनाक प्रभावों के बारे में) के बावजूद धूम्रपान में उल्लेखनीय कमी नहीं आ रही है। भारत ‘पश्चिमी तरीके’ पर जा रहा है और अधिक महिलाएं धूम्रपान कर रही हैं। आइए हम अपने बच्चों को तंबाकू का सेवन शुरू करने से रोकें। इसका एकमात्र उपाय है पहली सिगरेट (या इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट) के सेवन को रोकना।
(लेखक डॉ. जी सी खिलनानी, पीएसआरआई इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी में क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन डिपार्टमेंट के चेयरमैन हैं। इससे पहले एम्स दिल्ली के पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेड मेडिसिन विभाग के एचओडी रहे हैं।)