जीवन में सफलता-असफलता के कई किस्से होते हैं। कुछ किस्से हम अपने आसपास देखते हैं और कुछ हमारे जीवन में ही घटते हैं। ऐसी ही एक कहानी है नारायण उपाध्याय की, जिन्होंने उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले की एक छोटे से गांव से अपनी सफलता की यात्रा शुरू की और IPS के सपने तक पहुंचे। नारायण उपाध्याय से ही उनके संघर्ष भरे, लेकिन प्रेरणादायक सफर को जानते हैं।
मैं बचपन से ही एक औसत विद्यार्थी रहा हूं। जितना भी पढ़ता था पूरे मन के साथ पढ़ता था। लेकिन मेरा अधिक ध्यान खेलकूद और शरारती गतिविधियों में लगा रहता था। आस-पड़ोस के लोग प्राय: मुझे बिगड़ा हुआ लड़का कहा करते थे। एक दिन हमारे परिवार के गुरु महाराज घर पर आए। मेरी मां हमेशा मेरे लिए चिंतित रहती थी। उन्होंने गुरु महाराज से पूछा कि महाराज इस लड़के को कोई सही राह दिखाएं। तब गुरु महाराज ने कहा कि यह लड़का एक दिन बड़ा होकर सेना या पुलिस में किसी बड़े पद पर जाएगा। उस दिन गुरु महाराज के मुंह पर चाहे मां सरस्वती का वास रहा हो या गुरु महाराज ने मेरा भविष्य ही देख लिया हो, लेकिन उनकी कही हुई वह बातें सत्य हुई और मैं आईपीएस के पद पर चयनित हो चुका हूं।
गांव से हुई प्रारंभिक शिक्षा
सच कहूं तो मेरे जीवन में नियति पहले से ही निर्धारित हो गई थी। उस दिन गुरु महाराज की कही गई बातें मैं भी सुन रहा था। मैंने भी मन ही मन तय कर लिया कि पुलिस के किसी बड़े पद पर जाना है। इसलिए मेरी पढ़ाई भी सिविल सर्विस जैसी क्षेत्र में ही रही है। हालांकि यह सफर इतना आसान नहीं था। मेरी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही एक विद्यालय में हुई। वहां मैंने बुनियादी साक्षरता तो प्राप्त की, लेकिन एक औसत विद्यार्थी था। दसवीं कक्षा में बहुत मेहनत करके 80 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। इसके बाद मुझे कई लोगो ने सलाह दी कि मैं बाहर जाकर पढ़ाई करूं। घर के आर्थिक हालत ऐसे नहीं थे कि मैं बाहर जाकर पढ़ पाऊं। लेकिन अब तक मेरे भीतर कुछ करने का संकल्प पैदा हो चुका था। मेरी जिद और मम्मी से कई बार कहने के कारण घर लोग मुझे जौनपुर से बाहर भेजने को तैयार हो गए।
गांव से प्रयागराज का सफर
अब मैंने प्रयागराज पहुंच गया। यहां 11वीं में मेरा दाखिला हो गया। घर के हालात को समझते हुए मैंने अपने को पूरी तरह पढ़ाई में झोंक दिया। दिन रात बस पढ़ने की धुन ही रहती थी। 11वीं में मुझे बहुत अच्छे अंक प्राप्त हुए। अब एक औसत विद्यार्थी से क्लास के टॉपर बच्चों तक का सफर मैंने तय कर लिया था। ये मेरे लिए प्रेरणा का कार्य करता था। बारहवीं कक्षा में जी जान लगाकर मेहनत की और मुझे 85 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए। मैं स्कूल के टॉप 10 बच्चों में था। इससे मुझे और मेरे घर वालों दोनों को अच्छा लगा। अब मेरे पापा को यह लगने लगा कि मैं मेहनत कर रहा हूं। तो वो भी मुझे सपोर्ट करने लगे। इस छोटी सी सफलता ने मेरे जीवन को नई राह देने का काम किया।
जिंदगी का सबसे यादगार पल
12वीं के बाद मैंने तय किया कि मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लूं। मैंने बीए में प्रवेश लिया। प्रथम वर्ष ऐसे ही बीता। द्वितीय वर्ष में मेरी मुलाकात कॉलेज के कार्यक्रम में इलाहाबाद के उस समय के SSP आनंद कुलहरी सर से हुई। उनसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा। उनके काम करने के तरीके ने मुझे प्रेरणा दी। उसी समय मैंने आईपीएस बनने का सपना संजो लिया। अब मैं पढ़ाई को लेकर और भी गंभीर हो गया। कॉलेज की राजनीति के अलग हटकर यूपीएससी के पाठ्यक्रम और पिछले सालों के प्रश्न पत्र के मुताबिक पढ़ने लगा। सीनियर्स की सलाह से किताबें खरीदीं।
प्रयागराज से दिल्ली तक का सफर
प्रयागराज में पढ़ाई के दौरान अक्सर चर्चा होती थी कि यूपीएससी की तैयारी दिल्ली में अच्छी होती है तो मैंने दिल्ली जाने का फैसला किया। लेकिन जैसा कि पहले ही बता चुका है कि बहुत मुश्किल से घरवाले प्रयागराज भेजने को तैयार हुए थे। हम दो भाई और दो बहन थे। सब पढ़ाई कर रहे थे। पापा की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी। लेकिन मेरी पढ़ाई की लगन और सफलता देखकर पापा के साथ मेरे मामा भी सहयोग के लिए आगे आए।
अब आईपीएस बनने के सपने के साथ मैं दिल्ली आ गया। दिल्ली में मेरे एक मित्र ने मुझे रहने की व्यवस्था करने का वादा करके बुलाया। जब मैं सामान के साथ वहां पहुंचा तो उसका फोन स्विच ऑफ था। इस बड़े शहर में मैं एकदम अकेला था। किसी तरह से रहने की व्यवस्था तलाश की। बाद में दिल्ली में कुछ अच्छे दोस्त बने। उनके साथ मैंने मन लगाकर पढ़ाई की। मैं जिस हॉस्टल में रहता था, वहां कई सीनियर स्टूडेंट रहते थे। वे यूपीएससी को अधिक कठिन मानते थे। कई बार तो उन्होंने मुझे सलाह दी कि अभी प्रीलिम्स निकालने के लिए तुम परिपक्व नहीं हो। लेकिन इन सब दावों की विपरीत कोचिंग संस्थान में विभिन्न टेस्ट में मेरे अच्छे प्रदर्शन मुझे प्रेरित करते थे। मैं निरंतर मेहनत करता रहा।
मैंने यूपीएससी का पहला प्रयास दिया। मुझसे जितनी हो सकता था मैंने उतनी तैयारी की। लेकिन सीसेट जैसे विषय में कुछ कमी रह जाने के कारण पहली बार मेरा प्रीलिम्स रुक गया। यह कोरोना का काल था। सामाजिक जीवन में भी लोगों से मेल मुलाकात नहीं हो पाती थी। ऐसे में मेरा फेल होना मेरे लिए बहुत बड़ी मानसिक चुनौती बन गई। मैं व्यक्तिगत रूप से बहुत ज्यादा दुखी रहने लगा लेकिन इसी समय में सीएपीएफ के लिए भी प्रयास कर रहा था उसमें मुझे सफलता मिली और मैं सीएपीएफ के इंटरव्यू तक पहुंचा| जिससे मुझे आगे मेहनत करने की फिर से प्रेरणा मिली|
दिल्ली में सफलता से साक्षात्कार
इसके बाद मेरा दूसरा प्रयास आया। दूसरे प्रयास में प्रीलिम्स और मेंस दोनों क्वालीफाई किया। साथ ही CAPF का पेपर दिया। मुझे दोनों में इंटरव्यू देने का मौका मिल गया। यूपीएससी में मेरा इंटरव्यू बड़ा शानदार हुआ और जब 23 मई के दिन रिजल्ट आया तो मैं 378वीं रैंकिंग के साथ आईपीएस के लिए चयनित हो गया। मैंने सबसे पहले मां को फोन करके परिणाम के बारे में जानकारी दी। ये सुनकर वो रोने लगी। मेरी आखों में भी आंसू आ गए। आंखों में 5-6 साल का संघर्ष और कठिनाइयां तैरने लगी। फिर पिताजी का फोन आया तो बधाई के साथ एक छोटी सी बात कही, “बेटा इतने बड़े पद पर पहुंच गए हो, लेकिन इस बात का ख्याल रखना कि आपके कलम से किसी गरीब का अहित न हो जाए।” यह लाइन मेरे जीवन का मूल बन गई और मैंने अपनी आत्मा में उतार लिया।
इसके बाद मुझे बधाई देने का तांता लग गया। 2 से 3 घंटे में मुझे करीब 100 फोन आए। जब मार्कशीट आई तो मैंने देखा कि हिंदी मीडियम के लिए एक बड़ी बाधा माने जाने वाले सामान्य अध्ययन में सबसे अधिक 421 अंक प्राप्त किया था। यह न सिर्फ मेरी बल्कि पूरे हिंदी माध्यम के लिए एक उपलब्धि थी। डॉक्टर विकास दिव्यकीर्ति सर ने मुझे इसके लिए विशेष रूप से बधाई दी।
जब मैं दिल्ली से घर गया तो वहां मेरा स्वागत बहुत धूमधान से हुआ। सैकड़ों लोगों ने मुझे सम्मानित किया। स्वयं राज्यसभा सांसद सीमा द्विवेदी जी मुझे रिसीव करने आई। घर पहुंचने पर कई दिनों तक लोग मुझे बधाई देने आते रहे। मेरी इस सफलता से मेरे गांव और इलाके के बच्चे भी बहुत उत्साहित और प्रेरित थे। अंत में यही कहूंगा कि मेरी सफलता की यात्रा माता-पिता और गुरु महाराज द्वारा बताई गई मेरी नियति से शुरू हुई। उस नियति की प्राप्ति के लिए संघर्ष की मेरी यात्रा आईपीएस बनकर पूरी हुई। आज मेरे घरवाले, मेरे आस-पड़ोस के लोग सभी मुझसे खुश हैं। इन लोगों की खुशी में ही मेरी खुशी है। मैं अपने आने वाले भविष्य, अपने कर्तव्यों के प्रति उम्मीद से भरा हूं।
अंत में एक लाइन कहना चाहूंगा