लोकसभा चुनाव अंतिम चरण की ओर है। एक जून को आखिरी चरण का मतदान बाकी है। इस बीच 30 मई से एक जून तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के शहर कन्याकुमारी के प्रवास पर रहेंगे। प्रधानमंत्री कन्याकुमारी में “विवेकानंद शिला स्मारक” में स्थित स्वामी विवेकानंद की मूर्ति और “ध्यान मंडपम” में ध्यान और साधना करेंगे। प्रधानमंत्री का कन्याकुमारी जाना साधारण घटनाक्रम नहीं है, क्यों? जानने के लिए पढ़िए निखिल यादव का लेख।
“विवेकानंद शिला स्मारक” के साथ स्वामी विवेकानंद का नाम जुड़ा हुआ है। उन्होंने भी यहां ध्यान ओर साधना की थी। सम्पूर्ण भारत के प्रवास के बाद स्वामीजी दिसंबर 1892 को कन्याकुमारी पहुंचे। पहले उन्होंने माता कन्याकुमारी मंदिर में दर्शन किए। फिर समुद्र के बीच स्थित इस शिला तक तैर कर पहुंच गए। स्वामी विवेकानंद ने 25, 26, 27 दिसंबर 1892 को इस शिला पर साधना करने के बाद भारत के पुनरुत्थान के लिए अपना कार्य शुरू किया।
स्वामीजी की ध्यानस्थली होने के अतिरिक्त इस शिला की दो और विशेषताएं हैं। पहली यहां माता कन्याकुमारी के “श्रीपाद” आज भी विद्यमान हैं। दूसरी यह शिला “तीन सागरों” के संगम के बीचों बीच स्थित है। दक्षिण भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी में स्थित इस शिला पर स्वामीजी विवेकानंद की जन्म शताब्दी पर उनका स्मारक बनाने का विचार आया। इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक एकनाथ रानाडे ने पूर्ण किया था।
स्वामी विवेकानंद का संन्यासी जीवन से पूर्व का नाम नरेंद्र था। भारत के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र हैं। जगह भी वही है, शिला भी वही है और चिंतन का विषय भी। ध्यान और चिंतन भारतवासियों की जीवन पद्धति का भाग है। अधिकतर व्यक्ति आत्मोन्नति और आत्मविकास के लिए ध्यान और चिंतन करते हैं। लेकिन स्वामी विवेकानंद का कन्याकुमारी की शिला पर किया हुआ ध्यान इसलिए इतना प्रसिद्ध और चर्चित हुआ क्योंकि यह व्यक्तिगत लाभ और हानि पर न केंद्रित होते हुए राष्ट्र के पुनरुत्थान पर केंद्रित था।
उस समय भारत पर अंग्रेज़ों का शासन था। राजनैतिक गुलामी के साथ-साथ आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर भी भारत अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था। भारतीय नवसंतति आत्मसम्मान, आत्मगौरव और आत्मविश्वास खो चुकी थी। उस समय स्वामी विवेकानंद ने उनके अंदर अतीत के प्रति गर्व और भविष्य के प्रति विश्वास जागृत किया था। स्वामी विवेकानंद ने कहा था “मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी में है। उनमें से मेरे कार्यकर्ता आएंगे। वे शेरों की तरह पूरी समस्या का समाधान करेंगे।”
आज भारत को स्वाधीन हुए 75 वर्षों से ज्यादा हो गया है। हर क्षेत्र में भारत ने उन्नति की है। चाहे वह एक उभरती हुए आर्थिक शक्ति के तौर पर हो या फिर अन्य क्षेत्र हो। मुख्यतः कृषि, दूध उत्पादन, उद्योग, वाणिज्य, विज्ञान, अंतरिक्ष मिशन, सेना, खेल (क्रिकेट) भारत दुनिया में झंडे गाड़ चुका है। भारत के पास विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा के तौर पर “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” है। विश्व के सबसे बड़े रेल और सड़क नेटवर्क वाले देशों की श्रेणी में भारत का नाम आता है।
भारत विकासशील देश है और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उसने “विकसित भारत” बनने की हुंकार भरी है। यह मात्र स्वप्न नहीं है, बल्कि संकल्प है। इसका प्रमाण है विश्व के अनेकों देशों का भारत के प्रति बढ़ता विश्वास। इसकी झलक हमें G20 सम्मेलन में दिखी थी। भारत अकेला ऐसा देश है, जो विकासशील देशों की श्रेणी में आता है, लेकिन उसे “वर्ल्ड लीडर” के तौर पर देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान और चिंतन व्यक्तिगत ना रहते हुए “विकसित भारत” पर केंद्रित होगा। स्वामी विवेकानंद ने पश्चिम के सामने हुंकार भरी थी कि आने वाली शताब्दी भारत की होगी। चाहे वह स्वामी विवेकानंद हो या अब प्रधानमंत्री मोदी। इनके चिंतन का विषय व्यक्तिगत नहीं, राष्ट्रीय है, जिसका केंद्र बिंदु भारत माता हैं।
विवेकानंद शिला स्मारक के निर्माण की कहानी
एकनाथ रानाडे की पुस्तक “कथा विवेकानंद शिला स्मारक की” हमें स्मारक निर्माण के विभिन पहलुओं से अवगत कराती है।
विवेकानंद शिला स्मारक के निर्माण का विचार स्वामी विवेकानंद की जन्म शताब्दी पर उत्पन्न हुआ। 1970 में एकनाथ जी रानाडे के प्रयासों से ये पूर्ण हुआ। हालांकि उस वक्त तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भक्तवसलम ने शिला पर निर्माण करने से स्पष्ट मना कर दिया था। केंद्रीय सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हुमायूं कबीर ने “शिला पर स्मारक प्राकृतिक सौंदर्य को खराब कर देगा” कहकर बाधाएं खड़ी कीं।
लेकिन कुशल प्रबंधन, धैर्य एवं पवित्रता के बल पर एकनाथ रानाडे ने इस विषय को राजनीति से दूर रखते हुए विभिन्न स्तरों पर स्मारक के लिए लोक संग्रह किया।
एकनाथ रानाडे ने विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों को अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर “भारतीयता की विचारधारा” में पिरो दिया। तीन दिन में 323 सांसदों के हस्ताक्षर लेकर तब के गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पास पहुंच गए। जब इतनी बड़ी संख्या में सांसदों ने स्मारक बनने की इच्छा प्रकट की तो संदेश स्पष्ट था कि “पूरा देश स्मारक की आकांक्षा करता है।”
समाज को स्मारक से जोड़ने के लिए लगभग 30 लाख लोगों ने 1, 2 और 5₹ भेंट स्वरूप दिए। उस समय की लगभग एक प्रतिशत युवा जनसंख्या ने इसमें भाग लिया। रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी वीरेश्वरानंद महाराज ने स्मारक को प्रतिष्ठित किया। औपचारिक उद्घाटन 2 सितंबर, 1970 को भारत के राष्ट्रपति वी वी गिरि ने किया।
(लेखक निखिल यादव-विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं। वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधकर्ता हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)