उत्तर प्रदेश के भदोही जिले का जिला कारागर एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार चर्चा प्रयागराज महाकुंभ में बंदियों के हुनर के प्रदर्शन को लेकर हो रही है। वजह है कि उत्तर प्रदेश के सबसे छोटे जिला कारागर में तैयार कालीनों का प्रदर्शन महाकुंभ में होगा। महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालु और सैलानी जिला कारागार के कैदियों के जरिए भदोही के इस विश्व प्रसिद्ध हुनर से रूबरू हो पाएंगे।
भदोही जिला कारागार के जेल अधीक्षक अभिषेक सिंह ने बताया कि प्रयागराज महाकुंभ के लिए जिला कारागार के हुनरमंद कैदियों को 100 कालीन तैयार करने का ऑर्डर मिला है। कालीन बुनने में कुशल जेल के 31 बंदी इस ऑर्डर को पूरा करने में जुटे हैं। महाकुंभ में भदोही की कालीन को एक स्टॉल के जरिए प्रदर्शित किया जाएगा।
महाकुंभ में लगे वाले स्टाल में बंदियों की बनाई गई करीब 100 टफ्टेड और 25-30 हस्तनिर्मित कालीन प्रदर्शित होंगी। टफ्टेड कालीन हाथ से चलने वाले कालीन बुनने के औजार की मदद से तैयार होती है।
जेल अधीक्षक अभिषेक सिंह ने बताया कि कारागार के हुनरमंद कैदी ऑर्डर के तहत महाकुंभ के “लोगो” वाली कालीन भी बना रहे हैं। महाकुंभ का “लोगो” 6 फीट लंबे और 6 फीट चौड़े कालीन पर बनाया जा रहा है। इसे दस बंदियों की टीम तैयार कर रही है। “लोगो” वाले कालीन को महाकुंभ में महत्वपूर्ण स्थानों पर प्रदर्शित किया जाएगा। साथ ही बंदी प्रभु श्री राम, भगवान गणेश समेत कई धार्मिक चिन्ह वाले वाल हैंगिंग और कालीन भी बना रहे हैं।
बंदियों का कहना है कि हमारे लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है कि हमारे हाथों से बनी कालीन महाकुंभ में प्रदर्शित होगी। ऐसे आयोजन हमारे लिए समाज में दोबारा स्थान बनाने का अवसर हैं। जेल अधीक्षक अभिषेक सिंह कहते हैं कि महाकुंभ में भदोही की कालीनों का प्रदर्शन सिर्फ एक कला की पहचान नहीं है। इससे एक संदेश भी है कि कठिनाइयों से उबरने और मेहनत से अपने जीवन को नया दिशा देने का कोई अवसर कभी खत्म नहीं होता।
भदोही को कालीन नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां के कालीन उद्योग की पूरी दुनिया में साख और पहचान है। यहां तैयार कालीन की दुनिया के कई देशों में खूब मांग है। देश भर में ‘एक जिला एक उत्पाद’ योजना परवान चढ़ी तो शासन के आदेश पर जिला जेल के बंदियों को भी इस योजना से जोड़ने की पहल हुई। तत्कालीन जिलाधिकारी गौरांग राठी की पहले से जेल में इस योजना की शुरुआत हुई।
सबसे पहले बुनाई के लिए लूम लगाने के जरूरत थी। ऐसे में जेल की पुरानी जर्जर हो चुकी एक बैरक को चुना गया। उसकी मरम्मत की गई। इसमें सात लूम लगाए गए। चार लूम टफ्टेड और तीन लूम हैड नॉटेड यानी हस्त निर्मित कालीन के लिए बनाए गए। जेल में कालीन बुनाई का हुनर जानने वाले कुछ कैदी थे। उनके साथ प्रशासन ने कुछ बंदियों को प्रशिक्षण दिया। अब बंदी कालीन की बुनाई के लिए तैयार थे।
शुरुआत 10 कैदियों से हुई। अब जेल में कालीन बुनने वाले हुनरमंद बंदियों की संख्या 31 पहुंच गई है। पुराने बंदी ही इस कला को सीखने को उत्सुक बंदियों को कालीन बुनने की कला सिखाते हैं। यानी इसके लिए जेल में एक गुरु शिष्य परंपरा भी विकसित हुई है।
शुरुआत में भदोही के कुछ निर्यातकों ने कच्चा माल देकर मदद भी की। अब जेल प्रशासन स्वयं बाजार से कच्चा माल बाजार खरीदता है। बंदियों को कालीन की बुनाई का पारिश्रमिक भी दिया जाता है। ये चेक के माध्यम से दिया जाता है। जेल प्रशासन अधीक्षक अभिषेक सिंह के मुताबिक कालीन बुनाई के काम में लगे बुनकर की तीन से चार हजार रुपये महीने की कमाई हो जाती है।
जिला कारागर के मुख्य गेट पर “ताना बाना” के नाम से एक कालीन विक्रय केंद्र भी खोला गया है। विक्रय केंद्र के माध्यम से कैदियों की बनाई कालीन की बिक्री होती है। इसके अलावा विभिन्न प्रदर्शनियों के जेल प्रशासन की ओर से स्टाल लगाया जाता है। अब तक हुनरमंद बंदियों के लगभग तीन लाख रुपये के कालीन विभिन्न प्रदर्शनियों में बिक चुके हैं और दो लाख रुपये के कालीन बनकर तैयार हैं।
प्रशासन की इस पहल से भदोही जिला कारागर के बंदियों के हुनर को सम्मान मिला है। ये दिखाता है कि अपराध के दलदल में फंसने के बाद भी कला और श्रम से आत्मविश्वास और गौरव की नई ऊंचाइयां हासिल की जा सकती हैं।
रिपोर्ट – शरद रमेश मौर्य