गाजियाबाद के एक गाँव में लाइब्रेरी की शुरुआत ने पूरे इलाके की तस्वीर बदल दी। कुछ पढ़े लिखे और नौकरीशुदा लोगों ने अपने गांव में लाइब्रेरी की सफलता के बाद इसे मुहिम का रूप दे दिया। जुनून और जज्बा ऐसा कि सिर्फ जागरुकता के सहारे सात राज्यों के 1600 से ज्यादा गांवों में लाइब्रेरी बनवा चुके हैं। गांव में पढ़ाई का मंदिर रूपी लाइब्रेरी बनाने वाली इस मुहिम का नाम है ग्राम पाठशाला।
ग्राम पाठशाला मुहिम की शुरुआत अगस्त, 2020 से उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद जिले की लोनी तहसील के छोटे से गांव गनौली से हुई थी।
गांव के लाल बहार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली में पुलिस उप-अधीक्षक के पद पर तैनात हैं। वे अक्सर छुट्टी में गांव आते। एक छुट्टी में गांव पहुंचे तो लाइब्रेरी बनाने को लेकर चर्चा छिड़ी हुई थी। गाँव के कई नौकरीशुदा युवा अपने गांव के बच्चों के लिए लाइब्रेरी बनवाना चाहते थे। बातचीत में गांव से ही पैसा इकट्ठा कर लाइब्रेरी बनाने की बात तय हुई। पहल रंग लायी और कुछ ही दिनों खाली पड़े पंचायत भवन में 70 सीटों वाली लाइब्रेरी बनकर तैयार हो गई। सभी ने इसमें बढ़-चढ़कर योगदान किया।
गांव में लाइब्रेरी बनने से सब बहुत खुश थे। लेकिन एक ही हफ्ते में ये खुशी काफूर हो गई। लाइब्रेरी में बच्चों की इतनी भीड़ होने लगी कि 70 सीट कम पड़ने लगी। पढ़ाई की ललक ऐसी कि सुविधा मिली तो आस पास के गांव के बच्चे भी गनौली गांव की लाइब्रेरी में आने लगे। अगली छुट्टी में लाल बहार गांव पहुंचे तो उन्होंने समस्या का एक समाधान सुझाया। इसमें ये तय हुआ कि दूसरे गांव के किसी भी बच्चे को लाइब्रेरी में पढ़ने से मना नहीं किया जाए। लेकिन आस-पास के गांवों को भी लाइब्रेरी बनाने के लिए जागरूक किया जाए। इसी विचार से ग्राम पाठशाला का जन्म हुआ।
मुहिम को ग्राम पाठशाला का नाम देवेन्द्र बैसला ने दिया। लाल बहार के मित्र डॉक्टर अजय पाल नागर गनौली गांव में लाइब्रेरी की स्थापना से प्रभावित थे। अभी आस-पास के गांवों में जाने की योजना बन ही रही थी कि उन्होंने लाल बहार और उनके साथियों को अपने गांव बम्बावड बुला लिया। इनका गांव पड़ोस के गौतम बुद्ध नगर जिले में था। जब गनौली के लोग पहुंचे तो डॉ अजय पाल नागर और देवराज नागर गांव के समस्त लोगों के साथ स्वागत के लिए इकट्ठा था। मौके पर ही लाइब्रेरी के लिए फंड इकट्ठा हो गया। लेकिन पड़ौसी गाँव कलदा के लोग इस खबर से इतने प्रेरित हुए कि उन्होंने बंबावड से भी पहले लाइब्रेरी बना ली। अब दो गांवों में लाइब्रेरी का सफल मॉडल सबके सामने था। इसके बाद गनौली के आस-पास के गांवों ने टीम पाठशाला की मुहिम को हाथोंहाथ लिया।
अब टीम पाठशाला ने तय किया कि छुट्टी का दिन घर नहीं बिताएंगे। बल्कि किसी न किसी गांव में जाकर लाइब्रेरी बनाने के लिए लोगों को जागरुक करेंगे। इस बीच टीम में आस-आस के गांवों के लोग भी जुड़ते गए।
गनौली के सिर्फ कुछ लोगों से टीम पाठशाला का सफर शुरू हुआ था। अब टीम में सैकड़ों लोग थे। पाठशाला गांव-गांव गई। जहां जिसने बुलाया पहुंच गए। पंचायत लगी। लोगों को लाइब्रेरी बनाने के लिए जागरुक किया। गांव दर गांव लाइब्रेरी बनती रही। हौंसला मिलता रहा। कोई इन्हें देवदूत कहने लगा। कोई भागीरथ कहने लगा। गांवों में पहली बार लोगों ने पढ़ाई के लिए पंचायत लगते देखी। जिन गांवों में लाइब्रेरी के लिए पंचायत भवन नहीं था वहां किसी ने पुरानी बैठक दे दी। किसी ने खाली पड़ा घर दे दिया। कई गांवों में तो लोगों ने जमीन या घर लाइब्रेरी कमेटी के नाम रजिस्ट्री कर दी।
सफलता
ग्राम पाठशाला की प्रेरणा से अब तक सात राज्यों उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और हरियाणा के 1600 से भी ज्यादा गांवों में पुस्तकालय बन चुके हैं।
संगठन
टीम ग्राम पाठशाला ना तो कोई औपचारिक संगठन है और ना ही ये एनजीओ के तौर पर पंजीकृत है। ग्राम पाठशाला कुछ उच्च शिक्षित और अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य कर रहे लोगों का समूह है। ज्यादातर सदस्य सरकारी या प्राइवेट नौकरी करते हैं। इनमें प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी, अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर, खिलाड़ी आदि शामिल हैं। इस संगठन की एक विशेषता यह भी है कि इसमें न तो कोई पद है और न ही कोई पदाधिकारी है। सभी सदस्य मात्र हैं।
टीम ग्राम पाठशाला का संकल्प है कि जब तक देश के हर गांव में पुस्तकालय नहीं बन जाता तब तक सदस्य किसी भी छुट्टी के दिन अपने घर पर नहीं रहेंगे।
कार्यशैली
टीम ग्राम पाठशाला का काम केवल गांव के लोगों को लाइब्रेरी निर्माण के लिए प्रेरित करना है। टीम के साथी हर छुट्टी के दिन गांव-गांव जाते हैं। जन-जागरण के उद्देश्य से पैदल यात्रा, साइकिल यात्रा करके आखिर में गांव के किसी सार्वजनिक स्थल पर मीटिंग करते है। मीटिंग में लोगों को पुस्तकालय का महत्व समझाया जाता है। उन्हें प्रेरित किया जाता है कि वे अपने गांव के बच्चों के लिए गांव में ही पुस्तकालय का निर्माण करें।
संचालन
गांव की लाइब्रेरी गांव में ही गांव के लोग फंड इकट्ठा करके बनाते हैं। लाइब्रेरी बनने के बाद उसका संचालन भी गांव के लोग ही करते हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा में ग्राम पाठशाला की पहल पर बनी कई लाइब्रेरी के रखरखाव का खर्च भी गांवों में शादियों में चली आ रही एक परंपरा से आ रहा है। इन इलाकों में एक परंपरा है। बारात लौटते वक्त दूल्हा पक्ष गांव के लिए कुछ दान करता है। पहले ये दान गांव के मंदिर के लिए होता था। अब जिन गांवों में लाइब्रेरी है, वहां मंदिर के साथ लाइब्रेरी के लिए भी दान की नई परंपरा जुड़ गई। इस दान से लाइब्रेरी का रखरखाव बहुत ही आसानी से हो जाता है।
गांवों में चमत्कारिक बदलाव
गांवों में पुस्तकालय बनने से युवा व्यर्थ में या सोशल मीडिया पर समय गुजरने के बजाय लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ते हैं। इससे युवाओं में स्वाध्याय की प्रवृति बढ़ी है। युवा अपराध और नशे की दुनिया में जाने के बजाय पढाई की तरफ रुख कर रहे हैं। एक अकेले पुस्तकालय ने पूरे गांव का माहौल ही बदल दिया है। अब युवा अब अब पहले से ज्यादा तादाद में रोजगार हासिल करने में सफल हो रहे हैं।
मुजफ्फरनगर जिले के तत्कालीन पुलिस कप्तान अभिषेक यादव भी इस मुहिम से बहुत प्रभावित हुए। एक हैरान करने वाला तथ्य सामने आया। लाइब्रेरी वाले गांवों में अपराध की दर घट गई। इससे प्रशासन भी प्रभावित हुआ। अभिषेक यादव ने जिले के हर थानेदार को लाइब्रेरी को लेकर जागरुकता फैलाने को कहा। छुट्टी वाले दिन टीम पाठशाला की अलग-अलग टीमें मुजफ्फरनगर जाती। हर थाने में थानेदार अपने इलाके में पड़ने वाले गांवों के प्रधानों बुला लेते और उनकी बैठक कराते। टीम पाठशाला उन्हें लाइब्रेरी बनाने के लिए जागरुक करती। कप्तान की इस पहल का असर हुआ। उनके कार्यकाल में मुजफ्फरनगर जिले में कई लाइब्रेरी बनी।
ग्राम पाठशाला का संकल्प
टीम ग्राम पाठशाला का संकल्प है कि देश के हर गांव में लाइब्रेरी नहीं बनने तक यह मिशन चलता रहेगा ताकि देश के हर गांव के बच्चों को उनके गांव में ही पढ़ने के लिए पुस्तकालय मिल जाए। ग्राम पाठशाला का संकल्प देश में 6,64,369 पुस्तकालय बनवाने का है। सपना है कि एक दिन हिंदुस्तान “पुस्तकालयों का देश” बने।