यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड सूची’ में शामिल की गई रामचरितमानस’ सहित तीन पांडुलिपियां

Image of The Manuscript of Rāmacaritamānasa

भारतीय साहित्य और संस्कृति को गहराई से प्रभावित करने वाले रामचरितमानस की पांडुलिपी यूनेस्कों की  ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड सूची’ में शामिल की गई है। इसके अलावा पं. विष्णु शर्मा की रचना ‘पञ्चतन्त्र’ और आचार्य आनंदवर्धन की ‘सहृदयलोक-लोचन’ की पांडुलिपियों को भी इस सूची में जगह मिली है। इन तीनों ग्रंथों की पांडुलिपियों को इस सूची में जगह मिलना भारत के सांस्कृतिक संरक्षण प्रयासों की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

 

नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित ‘रामचरितमानस’ पांडुलिपि में बनी पेंटिंग

 

एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए विश्व की स्मृति समिति (मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमिटि फॉर एशिया एंड द पैसिफिक- एमओडब्ल्यूसीएपी) की 10वीं बैठक एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर थी, क्योंकि भारत से तीन नामांकन सफलतापूर्वक यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय रजिस्टर’ में शामिल हो गए। 6 से 10 मई, 2024 को मंगोलिया की राजधानी उलानबटार में आयोजित इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र से 38 प्रतिनिधि और 40 पर्यवेक्षक तथा नामांकित एकत्र हुए।

 

पुणे के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में संरक्षित ‘पंचतंत्र’ की 15वीं शताब्दी की पांडुलिपि

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के डीन (प्रशासन) एवं कला निधि प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने भारत की इन तीन प्रविष्ठियों को प्रस्तुत किया:

 

  1. सहृदयलोक-लोचन की पांडुलिपि (भारतीय काव्यशास्त्र का महत्वपूर्ण पाठ)
  2. पञ्चतन्त्र की पांडुलिपि
  3. तुलसीदास के रामचरितमानस की चित्रित पांडुलिपि

 

रजिस्टर उप-समिति (आरएससी) द्वारा विस्तृत चर्चा और सिफारिशों के बाद तथा सदस्य देशों के प्रतिनिधियों द्वारा वोटिंग के बाद तीनों नामांकन सफलतापूर्वक शामिल हो गए, जो 2008 में रजिस्टर की शुरुआत से पहले किए गए पहले भारतीय प्रवेशों को चिह्नित करते हैं।

 

‘रामचरितमानस’, ‘पञ्चतन्त्र’ और ‘सहृदयलोक-लोचन’ ऐसी कालजयी कृतियां हैं, जिन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है, राष्ट्र के नैतिक ताने-बाने और कलात्मक अभिव्यक्तियों को आकार दिया है। इन साहित्यिक कृतियों ने समय और स्थान का अतिक्रमण कर भारत और उसके बाहर भी पाठकों और कलाकारों की पीढ़ियों पर एक अमिट छाप छोड़ी है। गौरतलब है कि ‘सहृदयालोक-लोचन’ की रचना नवीं शताब्दी में आचार्य आनंदवर्धन ने की थी, जबकि ‘पञ्चतन्त्र’ की रचना पं. विष्णु शर्मा ने की थी।

 

 

इन पांडुलिपियों का समावेश भारत के लिए गौरव का क्षण है, जो देश की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण है। यह वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण प्रयासों में एक कदम आगे बढ़ने का प्रतीक है। इन उत्कृष्ट कृतियों का सम्मान करके, हम न केवल उनके रचनाकारों की रचनात्मक प्रतिभा को श्रद्धांजलि देते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि उनकी गहन बुद्धिमता और सार्वकालिक शिक्षाएं भावी पीढ़ियों को प्रेरित और प्रबुद्ध करती रहे।