“सनातन का वैज्ञानिक दर्शन” — सनातन जीवन दर्शन की नई वैज्ञानिक दृष्टि

“सनातन का वैज्ञानिक दर्शन” ऐसी पुस्तक है जो हमारी सनातन संस्कृति, परंपरा और उसके पीछे छिपे वैज्ञानिक विचारों को सरल भाषा में समझाने का प्रयास करती है। यह ग्रंथ बताता है कि सनातन केवल एक धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने का शाश्वत और वैज्ञानिक मार्ग है। इसमें वेदों, उपनिषदों और भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार […]

सनातन का वैज्ञानिक दर्शन” ऐसी पुस्तक है जो हमारी सनातन संस्कृति, परंपरा और उसके पीछे छिपे वैज्ञानिक विचारों को सरल भाषा में समझाने का प्रयास करती है। यह ग्रंथ बताता है कि सनातन केवल एक धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने का शाश्वत और वैज्ञानिक मार्ग है। इसमें वेदों, उपनिषदों और भारतीय ज्ञान परंपरा के आधार पर सनातन के नियमों और सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप से समझाया गया है। विजय कुमार प्रसाद और डॉ. आलोक कुमार मिश्रा की कलम से “सनातन के वैज्ञानिक स्वरूप” पुस्तक की एक झलक।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।

श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय-2, श्लोक-23

इस आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न ही अग्नि इसे जला सकती है। न जल इसे गीला कर सकता है और न ही वायु इसे सुखा सकती है।

यह श्लोक आत्मा के अजर, अमर और शाश्वत स्वरूप को दर्शाता है। सनातन का अर्थ ही है — जो सदा से है, सदा रहेगा, जिसका न कोई आदि है और न कोई अंत। यह श्लोक इसी ‘सनातन’ तत्व (आत्मा) की व्याख्या करता है जो हर जीव में विद्यमान है और जिसे किसी भी भौतिक वस्तु या शक्ति से नष्ट नहीं किया जा सकता।

यही सनातन धर्म का केंद्रीय भाव है। इसलिए सनातन कभी न समाप्त होने वाला नियम है, जो कि आदि और अंत से परे है — वह शाश्वत है और हमेशा शाश्वत ही रहेगी।

सनातन का वैज्ञानिक दर्शन” सिर्फ एक पुस्तक न होकर एक संकलन है। इस पुस्तक के तीन मुख्य अंग हैं —

  1. सनातन के बारे में सामान्य जानकारी,
  2. सनातन के नियम और उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण,
  3. अलग-अलग धर्म और कुछ विशेष व्यक्तियों के सनातन के वैज्ञानिक स्वरूप के बारे में उनके विचार।

इन तीनों विषयों के न तो हम विशेषज्ञ हैं और न ही अध्येता हैं। हां, ये अवश्य है कि हमें अपनी सनातन परम्परा, उसके आध्यात्मिक, वैज्ञानिक विचारधारा और भारतीय संस्कृति से प्रेम है और इनका व्यावहारिक ज्ञान भी है। यह पुस्तक किसी तरह के ज्ञान के प्रदर्शन का दावा नहीं करती है, क्योंकि सनातन एक विशाल समुद्र की तरह है और यह पुस्तक उस समुद्र की कुछ बूंदें ही हैं।

लेखकीय में स्पष्ट लिखा है कि इस पुस्तक को पढ़कर आपको कोई अतिरिक्त जानकारी मिल जाएगी, इसका कोई दावा नहीं है। लेकिन अपनी संस्कृति और भारतीय ज्ञान परम्परा से लगाव रखने वालों के लिए यह पुस्तक उपयोगी अवश्य होगी।

यह पुस्तक विद्वानों के लिए नहीं, युवाओं और विद्यार्थियों के लिए लिखी गई है।हमारा उद्देश्य है कि युवा पीढ़ी इस पुस्तक के माध्यम से अपनी सनातन संस्कृति, भाषा और उसके विज्ञान को विस्तार में, वर्तमान समय की परिस्थितियों के साथ समझ सके।

इस पुस्तक के लेखन के दौरान हमने जो अध्ययन किया, वह वेदों, उपनिषदों, पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में लिखे गए कुछ लेखों से जानकारी लिया गया है। इसके साथ ही इस विषय के कुछ अपने विद्वान मित्रों, आध्यात्मिक गुरु और सनातनी विचारधारा के लोगों से भी बात करके विषय वस्तु का चयन किया गया है।

तथ्य के साथ चलने की आदत है, लिहाजा यह पुस्तक कई स्थानों पर तथ्यों को प्रस्तुत करने में थोड़ी गंभीर अवश्य लगेगी, लेकिन उसमें भी हमारी विद्वता का कोई योगदान नहीं है। श्लोकों, संदर्भों और तथ्यों की गंभीरता का उपयोग केवल पुस्तक को व्यावहारिक बनाने के लिए किया गया है।

हो सकता है इसमें कुछ त्रुटियाँ भी हों। उसके लिए आपका सुझाव मिलेगा तो अगले संस्करण में इसमें सुधार कर लिया जाएगा। हम पुनः कह रहे हैं कि इसमें हमारी भावनाएँ ही प्राथमिक हैं। “सनातन का वैज्ञानिक दर्शन” नामक इस पुस्तक को यदि एक सनातनी की दृष्टि से अध्ययन करेंगे तो हमारी भावनाओं को गहराई से समझ पाएंगे।