90 फीसदी वंचित समाज के हक और आत्मसम्मान की पुकार है पीडीए

डॉ संजय लाठर उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर सामाजिक पुनर्संरचना की दिशा में आगे बढ़ रही है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष माननीय अखिलेश यादव का “पिछड़ा–दलित–अल्पसंख्यक (PDA)” फार्मूला अब प्रदेश की राजनीति में नई ऊर्जा और बहस लेकर आया है। यह पहली बार है जब कोई बड़ा पिछड़ा नेता दलितों और अल्पसंख्यकों को […]

डॉ संजय लाठर

उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर सामाजिक पुनर्संरचना की दिशा में आगे बढ़ रही है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष माननीय अखिलेश यादव का “पिछड़ा–दलित–अल्पसंख्यक (PDA)” फार्मूला अब प्रदेश की राजनीति में नई ऊर्जा और बहस लेकर आया है। यह पहली बार है जब कोई बड़ा पिछड़ा नेता दलितों और अल्पसंख्यकों को एक साझा मंच पर लाने की गंभीर और ईमानदार पहल कर रहा है। माननीय अखिलेश यादव का यह प्रयास केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का पुनर्जागरण है — एक ऐसा आंदोलन जो सत्ता से ज़्यादा समाज को बदलने की आकांक्षा रखता है।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने आरंभिक दौर में “बहुजन बनाम सवर्ण” की राजनीति के ज़रिए दलितों को सशक्त किया था। पर समय के साथ बसपा राजनीति “विचार” से “वोट–बैंक की सीमाओं” तक सिमट गई। बसपा ने समाजवादी पार्टी की नीति से दूरी बनाकर अपनी स्वतंत्र दलित पहचान बनाए रखने की नीति अपनाई, पर यही नीति दलित आंदोलन को अलग-थलग कर गई।

आज बसपा का यह रुख PDA जैसी ऐतिहासिक एकता के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बन गया है। जो बहुजनों में आपसी विभेद पैदा करके अपने वोट बैंक को बनाए रखना चाहती है। दलितों को अलग-थलग रखकर बसपा अनजाने में उन्हीं मनुवादी शक्तियों को बल दे रही है, जिनसे बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने जीवनभर संघर्ष किया था।

PDA मूल रूप से ‘पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक’ के शोषण, उत्पीड़न व उपेक्षा के खिलाफ उठती हुई चेतना व समान अनुभूति से जन्मी उस एकता का नाम है, जिसमें हर वर्ग के वे सब लोग भी शामिल हैं, जो मानवता के आधार पर इस तरह की नाइंसाफी के खिलाफ हैं। माननीय अखिलेश यादव ने जब PDA की ये ऐतिहासिक व्याख्या की, तब उन्होंने हर किसी से दलगत राजनीति से ऊपर उठकर PDA से जुड़ने की अपील की।

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष ने 90 फीसदी शोषित, उत्पीड़ित, उपेक्षित, अपमानित पीडीए समाज को एक साथ जोड़ने की पहल की तो इसे वोट बैंक पॉलिटिक्स से जोड़ दिया गया। लेकिन ये स्पष्ट तौर पर समझना होगा कि PDA कोई वोट बैंक नहीं है। ये एक सामाजिक संरचना है। ये सामाजिक संरचना सशक्त होगी तभी पीडीए समाज को उसके अधिकार मिलेंगे। माननीय अखिलेश यादव के लिए PDA सबसे ऊपर हैं। 10 जनवरी 2024 को लखनऊ में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, किसी का कोई भगवान हो, हमारा भगवान PDA है।“

उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार में PDA पीड़ित और असहाय है। सामाजिक और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है। हजारों सालों से चली आ रही मनुवादी व्यवस्था को उत्तर प्रदेश की मौजूदा भारतीय जनता पार्टी की सरकार और मजबूती दे रही है। इटावा की घटना हम सबको भूली नहीं है। यहां PDA समाज के कथावाचक की जाति पता चलने पर ना सिर्फ कथा करने से रोका गया। बल्कि गंभीर बदसलूकी की गई। इस मामले में माननीय अखिलेश यादव ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि भाजपा सरकार में PDA समाज हेय दृष्टि से देखा जा रहा है।

PDA के प्रति मौजूदा सरकार की संवेदनशीलता देखनी हो तो प्रदेश के किसानों की बदतर दशा देखिए। प्रदेश में खेती करने वाले लोग PDA समाज के हैं। ऐसे में इस सरकार की PDA के प्रति घृणा का स्तर ये है कि किसानों को खेती के लिए जरूरी खाद तक नहीं मिल पाता। जब खेत को खाद ही नहीं मिलेगा तो उपज कहां पैदा होगी। पैदावार ही कमजोर होगी तो PDA कहां से मजबूत होगा। उत्तर प्रदेश सरकार का एक ही मकसद है कि PDA समाज को आगे नहीं आने देना है। उनकी आर्थिक हालात पर चोट करते रहना है। ये समाज जितना पिछड़ा रहेगा। भारतीय जनता पार्टी उतनी ही मजबूत रहेगी।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अखिलेश यादव PDA समाज को एक मजबूत सामाजिक संरचना के तौर पर देखे जाने के हिमायती हैं। संवैधानिक अधिकारों के सही बंटवारे के लिए पीडीए समाज की भागीदारी का सही आंकड़ा सामने आने की हिमायत करते हैं। वो वादा भी करते हैं कि उत्तर प्रदेश में 2027 में PDA सरकार में ही सही तरीके से जाति-जनगणना होगी।

PDA समाज की प्रशासन में कितनी हिस्सेदारी है। ये देखना हो तो उत्तर प्रदेश में जिलों में तैनात अफसरों को देख लीजिए। हिस्सेदारी पता चल जाएगी। गरीबों, वंचितों, पिछड़ों, दलितों का शोषण करने को कुख्यात कुछ खास लोगों की प्रशासन में हिस्सेदारी है। ऐसा नहीं है कि PDA समाज से प्रशासनिक अधिकारी नहीं हैं या फिर PDA समाज के पुलिस अधिकारी और कर्मचारी नहीं हैं। लेकिन इन्हें हाशिए पर रखा गया है। जब प्रमुख पदों पर PDA के अधिकारी नहीं होंगे तो इस समाज के पीड़ितों की कोई सुनवाई नहीं होगी। उन्हें न्याय नहीं मिलेगा। प्रशासनिक और पुलिस महकमे में कोई सुनवाई नहीं होगी।

समाजवादी पार्टी और माननीय अखिलेश यादव हमेशा से सामाजिक न्याय के पक्षधर रहे हैं। प्रशासन में PDA की उचित भागीदारी से इसे स्थापित किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि PDA समाज के अधिकारियों या कर्मचारियों की संख्या कम है। लेकिन उन्हें साइडलाइन और कम महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती देकर PDA समाज को हाशिए पर डालने की साजिश सफलतापूर्वक अंजाम दी जा रही है। ऐसा करके पीडीए को न्याय और सुशासन के समान अवसरों से वंचित रखा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में अहंकार का शासन है। इस अहंकारी शासन में PDA समाज असुरक्षित है। हिस्सेदारी से वंचित है। शिक्षा का हक छीना जा रहा है। राज्य में अल्पसंख्यकों में भय है। अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत की सियासत चरम पर है। अल्पसंख्यक हर तरीके से पुलिस प्रशासन के निशाने पर है। अल्पसंख्यकों पर जुल्म की इंतिहा है। नफरती भारतीय जनता पार्टी की सरकार में अल्पसंख्यक सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। उत्तर प्रदेश की अहंकारी सत्ता का बुलडोजर हर वक्त इन्हें कुचलने के लिए तैयार है। इबादतगाह और मदरसों पर सरकार का कहर टूट रहा है। मदरसे बंद कराए जा रहे हैं। इबादतगाहों पर बुलडोजर चल रहा है। अल्पसंख्यकों का रोजगार संकट में है। उनके रोजगार को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है।

दलितों का हाल तो ये है कि बाबा साहब के जिस संविधान से उन्हें अधिकार मिले। उसी संविधान को कुचला जा रहा है। दलित समाज के लिए बाबा साहब ने संविधान के ज़रिए समान अवसर, सम्मान और सुरक्षा की व्यवस्था की। लेकिन बाबा साहब के सामाजिक न्याय और संवैधानिक अधिकारों के विचारों को मनुवादी सरकार कुचलने में लगी है। दलितों का उत्पीड़न बढ़ा है। थानों और कचहरी में जाने से दलित डरने लगे हैं। दलितों पर अत्याचार की कहीं कोई सुनवाई नहीं है। सरकारी नौकरियों में दलितों के पद खाली पड़े हैं। संविदा भर्ती व्यवस्था से दलितों के रोजगार का हक़ छीना जा रहा है। उन्हें शिक्षा से भी वंचित रखा जा रहा है। छात्रवृत्तियाँ समय पर नहीं मिलतीं। इनके लिए फंड में भी कटौती की जा रही है।

डॉ. राम मनोहर लोहिया की सोच ही पिछड़ों को सत्ता और समाज में बराबरी दिलाना रही। माननीय अखिलेश यादव भी कहते हैं कि बिना पिछड़ों को अधिकार दिए लोकतंत्र अधूरा है।” लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने “सबका साथ” के नाम पर हर मोर्चे पर पिछड़ों का हिस्सा घटाया और सिर्फ मनुवादी जातियों को तुष्ट किया। इस सरकार में पिछड़े वर्ग के लिए तकनीकी और उच्च शिक्षा के अवसर घटे हैं। आरक्षण का हनन किया जा रहा है। भर्ती परीक्षाओं में ओबीसी आरक्षण को गलत तरीके से लागू किया गया है। सरकारी नौकरियों में पिछड़ों और दलितों के साथ अन्याय किया जा रहा है। माननीय अखिलेश यादव विश्वविद्यालयों की भर्ती में भगवाकरण का मुद्दा अक्सर उठाते रहते हैं।

पिछड़ों के अधिकारों पर डाका डाला जा रहा है। मौजूदा व्यवस्था में आरक्षण को खत्म करने के षडयंत्र बुने जा रहे हैं। इसी साजिश के तहत आरक्षण की समीक्षा करने की बात अक्सर कोई न कोई छेड़ देता है। राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत 2015 में आरक्षण की समीक्षा करने की बात कर चुके हैं। आरक्षण की समीक्षा की चर्चा तो गाहे बगाहे छिड़ती रहती है लेकिन क्या आपको पता है कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट आयी थी तो उसकी कितनी सिफारिशें लागू हुई थीं। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि वीपी सिंह की सरकार में मंडल कमीशन की सिर्फ दो सिफारिशें ही लागू हुई थीं। जबकि कमीशन ने 40 प्वाइंट में सिफारिशें की हैं। मंडल कमीशन यानी पिछड़ा वर्ग आयोग की ज्यादातर सिफारिशें अभी भी धूल फांक रही हैं। इस पर चर्चा करने को कोई तैयार नहीं है कि समाज के वंचित तबके के उत्थान के लिए की गई संस्तुतियां अब तक लागू क्यों नहीं कराई जा सकीं।

PDA की समाज में 90 फीसदी हिस्सेदारी है। लेकिन नफरती राजनीति और वोट चोरी से सत्ता पर अहंकारी सरकार काबिज है। PDA को जब अपनी ताकत और शक्ति का एहसास होगा तो ये दृश्य बदल जाएगा। ज्यादा दूर ना जाएं 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के PDA समाज ने बंटवारे और नफरत की सियासत को आईना दिखा दिया।

माननीय अखिलेश यादव 2027 में उत्तर प्रदेश में PDA की सरकार बनाने को प्रतिबद्ध और कटिबद्ध हैं। उनकी लड़ाई PDA समाज को उसका हक दिलाने की है। उनका PDA फार्मूला परंपरागत समाजवादी राजनीति से आगे बढ़कर एक नए सामाजिक संतुलन की परिकल्पना प्रस्तुत करता है। वे केवल पिछड़ों और अल्पसंख्यक मतदाताओं तक सीमित नहीं रहना चाहते, बल्कि दलितों, गैर–यादव पिछड़ों, अति पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को जोड़कर राजनीति का केंद्र उन्हीं वर्गों को बनाना चाहते हैं, जिन्हें सदियों से सत्ता के हाशिये पर रखा गया।

माननीय अखिलेश यादव का यह प्रयोग सत्ता प्राप्ति का शॉर्टकट नहीं, बल्कि उस सामाजिक अन्याय के विरुद्ध संघर्ष है, जिसके सहारे मनुवादी सत्ता अब तक कायम रही है। यह पहली बार है जब राजनीति का केंद्र वही वर्ग बनने जा रहा है, जिसे इतिहास ने केवल सहने की आदत दी, पर हक नहीं। अब वही वर्ग अपनी सांझी विरासत और साझा भविष्य के साथ आगे बढ़ने को तैयार है।

अगर PDA की यह एकता सफल होती है, तो उत्तर प्रदेश में जातीय ध्रुवीकरण की दीवारें ढह जाएँगी। जिससे बहुजनों में पारंपरिक प्रतिस्पर्धा समाप्त होगी और सामाजिक न्याय की असली परिभाषा — प्रतिनिधित्व और सम्मान — सामने आएगी।

PDA कोई राजनीतिक नारा नहीं है ये वंचित, पिछड़े, कमजोर वर्ग की सामूहिक पुकार है। PDA आत्मसम्मान की लड़ाई है। PDA वोट चोरी को रोककर वोट की रक्षा करने की लड़ाई है। PDA दरअसल राजनीति का गठजोड़ नहीं, बल्कि समाज का पुनर्जागरण है। यह वह पुकार है जो सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि चेतना परिवर्तन की दिशा में उठाई जा रही है। अगर पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग सचमुच एकजुट हो जाता है, तो यह आंदोलन उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे भारत की राजनीति को नए सामाजिक युग में प्रवेश करा सकता है।

(लेखक डॉ. संजय लाठर उत्तर प्रदेश विधान परिषद के विरोधी दल रह चुके हैं। समाजवादी नेता-विचारक हैं। समाजवादी चिंतन और आंदोलन पर आपकी लेखनी खूब चलती है। अखिलेश यादव की जीवनी “समाजवाद के सारथी” के लेखक हैं।)