हर साल सिर्फ सेप्सिस से होती है दुनिया भर में एक करोड़ से ज्यादा मरीजों की मौत
विश्व सेप्सिस दिवस प्रो (डॉ.) वेद प्रकाश का विशेष लेख सेप्सिस सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों को प्रभावित कर सकता है। इसकी घटनाएं बढ़ रही हैं, पिछले कुछ दशकों में इसमें अत्यधिक वृद्धि देखी गई है। सेप्सिस से प्रति वर्ष लगभग 5 करोड़ लोग प्रभावित होते है। सेप्सिस के प्रमुख कारकों […]
विश्व सेप्सिस दिवस प्रो (डॉ.) वेद प्रकाश का विशेष लेख

सेप्सिस सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों को प्रभावित कर सकता है। इसकी घटनाएं बढ़ रही हैं, पिछले कुछ दशकों में इसमें अत्यधिक वृद्धि देखी गई है। सेप्सिस से प्रति वर्ष लगभग 5 करोड़ लोग प्रभावित होते है।
सेप्सिस के प्रमुख कारकों को समझना महत्वपूर्ण है। सेप्सिस प्रमुखतः निमोनिया (फेफड़ों में संक्रमण) मूत्र मार्ग में होने वाला संक्रमण या आपरेशन की जगह होने वाले संक्रमण की वजह से होता है। सेप्सिस के लिए प्रमुख रूप से शुगर (डायबिटीज) कैंसर के मरीज एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता कम करने वाली दवांइयां जैसे स्टेरोइड खाने वाले मरीज ज्यादा प्रवृत्त होते हैं।

सेप्सिस एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दा बना हुआ है, नवीनतम अनुमान के अनुसार, सालाना लगभग 5 करोड़ लोगों को सेप्सिस होती है। इसमें करीब 1 करोड़ 10 लाख मरीजों की हर साल मृत्यु हो जाती है। यह वैश्विक स्तर पर मौत का 5 में से 1 सबसे बडा कारण है। पिछले दशकों में सेप्सिस की घटनाओं में थोड़ी कमी आई है, लेकिन मृत्यु दर चिंताजनक रूप से अधिक बनी हुई है, खासकर कम आय वाले देशों में जहां स्वास्थ्य देखभाल का बुनियादी ढांचा सीमित है।
भारत में प्रतिवर्ष सेप्सिस से लगभग 1 करोड़ 10 लाख व्यक्ति ग्रसित होते हैं जिनमें लगभग 30 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। भारत में सेप्सिस से मृत्यु दर लगभग प्रति 100,000 लोगों पर 213 है, जो वैश्विक औसत दर से काफी अधिक है।
वैश्विक स्तर पर सेप्सिस के सभी मामलों में से लगभग 40 प्रतिशत मामले पांच साल से कम उम्र के बच्चों के होते हैं। बुजुर्गों और नवजात शिशुओं में सेप्सिस होने पर मृत्यु दर भी अधिक होती है। जिसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होता है। सेप्सिस से बचे 50 प्रतिशत तक लोग दीर्घकालिक शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक बीमारी से पीड़ित होते हैं।
सेप्सिस के कारण भारत पर काफी आर्थिक बोझ पड़ता है। प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत, जिसमें अस्पताल में भर्ती होना, दवाएँ और दीर्घकालिक देखभाल शामिल है एवं अप्रत्यक्ष लागत के साथ, सालाना लगभग 1 लाख करोड़ रूपये व्यय होते है। एक हालिया अध्ययन से यह भी पता चला है कि भारत में आईसीयू के आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं, और मल्टी-ड्रग-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होने वाले सेप्सिस की व्यापकता चिंताजनक रूप से 45 प्रतिशत से भी अधिक है।
सेप्सिस से वैश्विक अर्थव्यवस्था को सालाना लगभग ₹ 5 लाख 15 हजार करोड़ रुपये़ का नुकसान होता है। इसमें प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत के साथ-साथ अप्रत्यक्ष लागत जैसे सम्मिलित हैं।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Multi Drug Resistance ): विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है, दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से सालाना कम से कम 7 लाख मौतें होती हैं, जो कि सेप्सिस से जुड़ी होती हैं। एक नए अध्ययन के अनुसार, भारत में आईसीयू में आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित है, और पिछले एक दशक में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं। एक अध्ययन में देशभर के 35 आईसीयू से लिए गए 677 मरीजों में से 56 प्रतिशत से अधिक मरीजों में सेप्सिस पाया गया। इसमें अधिक चिंता की बात यह थी कि 45 प्रतिशत मामलों में, संक्रमण बहु-दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण हुआ था।
ऐसे में ये निहायत जरूरी है कि सेप्सिस की लड़ाई को मजबूती दी जाए। ऐसे में सभी को ये समझना होगा कि बुनियादी ढांचे की मजबूती और समय पर हस्तक्षेप सेप्सिस के खिलाफ लड़ाई में बहुत अहम है।
(लेखक प्रोफेसर (डॉ.) वेद प्रकाश केजीएमयू, लखनऊ के पल्मोनरी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट हैं।)
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