जब दो IAS अधिकारियों ने रचा इतिहास, इंग्लिश चैनल में लहरों को हराया
बर्फ-सा ठंडा समंदर, तैराक को उछालती लहरें, गोल-गोल घूमता रास्ता। सोचिए इन हालातों में घंटों तैरना कितना मुश्किल होगा। इन बाधाओं को पार करना किसी ओलंपिक एथलीट के लिए भी आसान नहीं है। लेकिन आप ये जानकार हैरान होंगे कि इन बाधाओं को बल्कि भारत के दो युवा IAS अधिकारियों ने पार कर लिया। इसमें […]
बर्फ-सा ठंडा समंदर, तैराक को उछालती लहरें, गोल-गोल घूमता रास्ता। सोचिए इन हालातों में घंटों तैरना कितना मुश्किल होगा। इन बाधाओं को पार करना किसी ओलंपिक एथलीट के लिए भी आसान नहीं है। लेकिन आप ये जानकार हैरान होंगे कि इन बाधाओं को बल्कि भारत के दो युवा IAS अधिकारियों ने पार कर लिया। इसमें एक उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के मौजूदा सीडीओ हैं।
जी हां, उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी अभिनव गोपाल और हरियाणा कैडर के दीपक बाबूलाल करवां ने ऐसा करके दिखाय है। इन दोनों अफसरों ने दुनिया के सबसे मुश्किल माने जाने वाले इंग्लिश चैनल को रिले तैराकी में इसी साल जून महीने में पार किया है। इससे पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा के किसी सेवारत अधिकारी ने ये उपलब्धि हासिल नहीं की है। 2020 बैच के अफसर अभिनव गोपाल इस वक्त उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में मुख्य विकास अधिकारी के पद पर तैनात हैं।
इंग्लिश चैनल, अटलांटिक महासागर की एक संकरी सी शाखा है। ये इंग्लैंड के दक्षिणी तट को फ्रांस के उत्तरी तट से अलग करती है। ‘इंग्लिश चैनल‘ को पार करने के लिए हर साल बड़ी संख्या में लोग जान की बाजी लगाते हैं। इस तैराकी को चैनल स्विमिंग एसोसिएशन से मान्यता मिली हुई है।
कब और कैसे पार किया ये समुद्री चमत्कार?
IAS दीपक करवां ने 16 जून को “प्राइड ऑफ इंडिया ए” टीम के साथ 13 घंटे 39 मिनट में इंग्लिश चैनल को पार किया। इसके ठीक दो दिन बाद, 18 जून को IAS अभिनव गोपाल “प्राइड ऑफ इंडिया बी” टीम के साथ निकले और केवल 11 घंटे 19 मिनट में यात्रा पूरी कर दी। ये भारत का नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बन गया है। दोनों टीम में 6-6 तैराक थे।
चैनल स्विमिंग असोसिएशन के नियमों के अनुसार, हर तैराक एक-एक घंटे बारी-बारी से पानी में उतरता है और यह चक्र तब तक चलता है जब तक टीम फ्रांस के तट पर न पहुंच जाए।

समुद्र की मार: हौसलों की सच्ची परीक्षा
इंग्लिश चैनल बाहर से जितनी सुंदर दिखती है, अंदर से उतनी ही डरावनी है। टीम जब तैराकी करनी उतरी तो पानी का तापमान 14 से 18 डिग्री सेल्सियस के बीच था। ऐसी ठंड में शरीर अकड़ जाता है। सांसें तेज़ चलने लगती हैं। मनोबल डगमगाने लगता है। ऊपर से, चैनल की सीधी दूरी भले ही 32 किलोमीटर हो, लेकिन तेज़ लहरें, ज्वार, और पार्श्व धाराओं की वजह से हर टीम को लगभग 47 किलोमीटर तैरना पड़ा।
लहरें कभी सामने से आती थीं, कभी बगल से। रास्ता सीधा नहीं था। तैराकों को हर वक्त अपनी दिशा और संतुलन बनाए रखना पड़ता था। इतनी ही परेशानी काफी नहीं थी, समंदर में जेलीफिल का खतरा अलग से था। हर पल डर कि कहीं किसी जेलीफिश का जहरीला डंक न लग जाए। इन सारी चुनौतियों और बाधाओं को पार कर हमारे तैराकों ने चैनल की गहराइयों को मात दी। इन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि भारत के अफसर समंदर की लहरों में भी लोहा मनवा सकते हैं।
सुरक्षा और प्रबंधन: सटीक योजना, चौकस निगरानी
इस अभियान की हर छोटी-बड़ी गतिविधि पर चैनल स्विमिंग एसोसिएशन की नज़र थी। एसोसिएशन के अनुभवी पर्यवेक्षक, पायलट बोट्स, और पूरे वक्त मेडिकल टीम तैराकों की सुरक्षा के लिए तैयार थे। हर चरण का समय रिकॉर्ड किया गया। हर नियम का सख्ती से पालन हुआ। किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए योजना तय थी। यह सिर्फ एक स्पोर्ट्स मिशन नहीं था, बल्कि एक पूर्ण वैज्ञानिक और मैनेजमेंट प्रैक्टिस था।

टीम की विविधता ही थी असली ताकत
“प्राइड ऑफ इंडिया ए” और “प्राइड ऑफ इंडिया बी” सिर्फ टीमों के नाम नहीं थे। ये भारत की आत्मा का प्रतिबिंब थे। टीम में कोई IAS अधिकारी था, तो कोई पैरा-एथलीट। कोई छात्र था, तो कोई पुलिस अधिकारी। कोई पेशेवर तैराक था, तो कोई आम जीवन से असाधारण साहस लाने वाला।
IAS अधिकारियों दीपक करवां और अभिनव गोपाल के साथ मानव राजेश मोरे, अमन शानभाग, राजबीर, गणेश बालगा, मुरिगेप्पा चनन्नावर, रॉबिन बलदेव, आयुषी आखाडे, आयुष तावड़े, शश्रुति नाकड़े, ईशांत सिंह और अन्य कई तैराक टीम का हिस्सा थे।

इन सभी को दिशा दे रहे थे भारत के जाने-माने पैरा-एथलीट और अर्जुन पुरस्कार विजेता प्रसांता कर्मकार। उन्होंने न सिर्फ टीम को रणनीतिक दिशा दी, बल्कि हर तैराक में साहस, अनुशासन और आत्मबल का भी संचार किया। टीम का हर सदस्य पृष्ठभूमि अलग थी, लेकिन सबका लक्ष्य एक था—तिरंगा इंग्लिश चैनल के उस पार पहुंचाना।
इससे पहले भी दिखा चुके हैं ताकत
इंग्लिश चैनल से पहले अप्रैल 2025 में इस ग्रुप ने भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य की भी तैराकी की थी। टीम ने 28 किलोमीटर की दूरी को 8.5 घंटे में पार किया था। इस अनुभव ने उन्हें इंग्लिश चैनल को पार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर दिया।
प्रेरणा के बोल
टीम लीडर प्रसांता कर्मकार ने कहा, “जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता है मानवता। जब हम साथ होते हैं, तो कोई भी लहर हमें डुबो नहीं सकती।” खुद तैराकों ने बताया कि ठंड, थकावट, उल्टी, और लहरों की लगातार चोट के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। क्योंकि उन्हें पता था कि वो अकेले नहीं हैं, भारत उनके साथ है।
नतीजा: एक रिकॉर्ड नहीं, एक प्रेरणा
यह कारनामा सिर्फ तैराकी का नहीं, देशभक्ति का प्रतीक बन गया है। यह उपलब्धि देश के युवाओं को एक नई सोच देती है कि जुनून, अनुशासन और टीम भावना से कोई भी सीमा पार की जा सकती है, चाहे वह भूगोल की हो, समंदर की हो, या हमारे खुद के डर की हो।

आज यह तैराकी सिर्फ रिकॉर्ड बुक में दर्ज नहीं हुई है, बल्कि हर उस भारतीय के दिल में बस गई है, जो बदलाव देखना चाहता है। और हां, जब आगे से कोई लहर आपको डराए, तो याद रखना—भारत के युवा अफसर भी लहरों से टकरा चुके हैं, और जीत चुके हैं।