हर घंटे 18 बाल विवाह रुके: भारत ने कर दिखाया, बाकी दुनिया सीख सकती है
संध्या: भारत में बाल विवाह की दर में बेतहाशा गिरावट दर्ज की गई है। जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) की ओर से जारी शोध रिपोर्ट, ‘टिपिंग प्वाइंट टू जीरो : एविडेंस टूवर्ड्स ए चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया’ के अनुसार देश में लड़कियों के बाल विवाह की दर में 69 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि […]
संध्या:
- भारत में बाल विवाह में उल्लेखनीय गिरावट, दुनिया के लिए बना सबक। एक रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह की दर में लड़कियों में 69% और लड़कों में 72% की गिरावट
- 84% की गिरावट के साथ असम शीर्ष पर, इसके बाद महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान और कर्नाटक का स्थान
- बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए 250 से भी ज्यादा नागरिक समाज संगठनों के सबसे बड़े नेटवर्क ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ ने जारी की रिपोर्ट
- बाल विवाह के खिलाफ कड़े कदमों के लिए ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा को ‘चैंपियंस ऑफ चेंज’ पुरस्कार से सम्मानित किया

भारत में बाल विवाह की दर में बेतहाशा गिरावट दर्ज की गई है। जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) की ओर से जारी शोध रिपोर्ट, ‘टिपिंग प्वाइंट टू जीरो : एविडेंस टूवर्ड्स ए चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया’ के अनुसार देश में लड़कियों के बाल विवाह की दर में 69 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि लड़कों में इस दर में 72 प्रतिशत की कमी आई है।
रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह की रोकथाम के लिए गिरफ्तारियां व एफआईआर जैसे कानूनी उपाय सबसे प्रभावी साबित हुए हैं। रिपोर्ट बताती है कि लड़कियों की बाल विवाह की दर में सबसे ज्यादा 84 प्रतिशत गिरावट असम में दर्ज की गई है। इसके बाद संयुक्त रूप से महाराष्ट्र व बिहार (70 प्रतिशत) का स्थान है, जबकि राजस्थान व कर्नाटक में क्रम से 66 और 55 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन वर्षों के दौरान केंद्र, राज्य सरकारों और नागरिक समाज संगठनों के समन्वित प्रयासों की बदौलत बाल विवाह की दर में यह अप्रत्याशित गिरावट संभव हुई है। सर्वे में हिस्सा लेने वाले 99 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने मुख्यत: गैरसरकारी संगठनों के जागरूकता अभियानों, स्कूलों व पंचायतों के जरिए भारत सरकार के बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के बारे में सुना या जाना है।
यह रिपोर्ट न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर एक अलग कार्यक्रम में जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन ने जारी की। इस रिपोर्ट को जेआरसी के सहयोगी संगठन इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के शोध प्रभाग सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहैविरल चेंज फॉर चिल्ड्रेन (सी-लैब) ने तैयार किया था।
बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी), 250 से भी ज्यादा नागरिक समाज संगठनों का देश का सबसे बड़ा नेटवर्क है। बाल विवाह की रोकथाम की दिशा में असम की अभूतपूर्व उपलब्धियों को मान्यता देते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा को ‘चैंपियंस ऑफ चेंज’ पुरस्कार से सम्मानित किया।
अगर इस संदर्भ में देखें कि 2019-21 तक देश में हर मिनट तीन बाल विवाह होते थे, जबकि रोजाना सिर्फ तीन मामलों की ही शिकायत दर्ज हो पाती थी, तो रिपोर्ट के नतीजे देश में ऐतिहासिक बदलावों की ओर इशारा करते हैं। रिपोर्ट बताती है कि आज लगभग हर व्यक्ति बाल विवाह से जुड़े कानूनों के बारे में जानता है और कुछ साल पहले तक यह बदलाव अकल्पनीय था।
रिपोर्ट इस तथ्य को उजागर करती है कि 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए 2024 में शुरू हुए भारत सरकार के बाल विवाह मुक्त भारत अभियान को बिहार, असम व महाराष्ट्र में जन-जन तक पहुंचाने में गैरसरकारी संगठनों की सबसे अहम भूमिका रही है। बिहार में 93%, महाराष्ट्र में 89% और असम में 88% लोगों को गैरसरकारी संगठनों के जरिए इस अभियान के बारे में जानकारी मिली।
राजस्थान व महाराष्ट्र में इस अभियान के बारे में जागरूकता फैलाने में स्कूलों की अहम भूमिका रही, जहां क्रम से 87% व 77% लोगों को स्कूलों से इसके बारे में पता चला।
बच्चों के खिलाफ इस अपराध के खात्मे के लिए सभी हितधारकों के बीच सामंजस्य व समन्वय और कानून पर सख्ती से अमल की जरूरत पर जोर देते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा,
बच्चों के खिलाफ इस अपराध के खात्मे के लिए सभी हितधारकों के बीच सामंजस्य व समन्वय और कानून पर सख्ती से अमल की जरूरत पर जोर देते हुए जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा,
“भारत आज बाल विवाह के खात्मे के कगार पर है। यह केवल एक सतत विकास लक्ष्य को हासिल करना भर ही नहीं है, बल्कि हमने दुनिया के सामने यह साबित किया है कि इसका खात्मा न सिर्फ संभव है, बल्कि यह होकर रहेगा।
सफलता के सूत्र बिल्कुल स्पष्ट हैं – सुरक्षा से पहले रोकथाम, अभियोजन से पहले सुरक्षा और रोकथाम के लिए निवारक उपाय के तौर पर अभियोजन।
यह सिर्फ भारत की जीत नहीं है, बल्कि दुनिया के लिए एक ब्लूप्रिंट है। सरकार का दृढ़ संकल्प, मजबूत साझेदारियां, समुदायों की भागीदारी, बच्चों की सहभागिता, सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच और कानून के शासन पर सख्ती से अमल हो तो बाल विवाह मुक्त विश्व हमारी पहुंच में है।”
बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए 250 से भी ज्यादा नागरिक समाज संगठनों का नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए केंद्र, राज्य सरकारों, जिला प्रशासनों, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, सामुदायिक कार्यकर्ताओं और ग्राम पंचायतों के साथ करीबी समन्वय में काम करता है।
रिपोर्ट बताती है कि सर्वे में शामिल सभी राज्यों के 31% गांवों में 6-18 आयुवर्ग की सभी लड़कियां स्कूल जा रही थीं, लेकिन इसमें खासी विषमताएं देखने को मिलीं। महाराष्ट्र के 51% गांवों में सभी लड़कियां स्कूल में थीं, जबकि बिहार में सिर्फ 9% गांवों में सभी लड़कियां स्कूल में थीं।
सर्वे में शामिल लोगों ने गरीबी (88%), बुनियादी ढांचे की कमी (47%), सुरक्षा (42%) और परिवहन के साधनों की कमी (24%) को लड़कियों की शिक्षा में सबसे बड़ी रुकावट बताया। इसी तरह 91% लोगों ने गरीबी और 44% ने सुरक्षा को बाल विवाह के पीछे सबसे बड़ा कारण बताया।
एक ऐसे समाज में जहां बाल विवाह की स्वीकार्यता थी और जिसके बारे में पुलिस को सूचना देना निषिद्ध समझा जाता था, भारत में हालिया वर्षों में उल्लेखनीय बदलाव देखने को मिला है। सर्वे में शामिल 63% लोगों ने कहा कि अब वे बाल विवाह के बारे में उचित अधिकारियों को सूचित करने में खुद को “काफी सहज” महसूस करते हैं, जबकि 33% ने कहा कि वे “कुछ हद तक” सहज महसूस करते हैं।
रिपोर्ट में 2030 तक देश से बाल विवाह के खात्मे के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं:
- बाल विवाह कानूनों पर सख्ती से अमल
- सूचना तंत्र को बेहतर बनाना
- विवाह पंजीकरण अनिवार्य करना
- बाल विवाह मुक्त भारत पोर्टल पर ग्राम स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम
- एक राष्ट्रीय दिवस की घोषणा जो बाल विवाह के खिलाफ लोगों को लामबंद कर सके
यह रिपोर्ट देश के पांच राज्यों के 757 गांवों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है। सर्वे के लिए इन सभी राज्यों व गांवों का इस तरह क्षेत्रवार तरीके से चयन किया गया कि वे देश के विविधता भरे सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों को परिलक्षित कर सकें।
बहुचरणीय स्तरीकृत सांयोगिक नमूना (मल्टीस्टेज स्ट्रैटिफाइड रेंडम सैंपलिंग) आधारित इस सर्वे में गांवों के आंकड़े जुटाने के लिए सबसे पहले आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, स्कूल शिक्षकों, सहायक नर्सों, दाइयों और पंचायत सदस्यों जैसे अग्रिम पंक्ति के लोगों से संपर्क किया गया।
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