वर्दी और व्याकरण: ITBP अफसर कमलेश कमल की हिंदी सेवा की कहानी

कभी पूर्णिया की मिट्टी से उठी एक आवाज़, आज देश की सीमाओं की रक्षा के साथ-साथ हिंदी भाषा की मर्यादा की भी रखवाली कर रही है। ये कहानी है कमलेश कमल की — एक ऐसे अधिकारी की जो सिर्फ वर्दी नहीं पहनते, बल्कि शब्दों से भी भाषा-प्रहरी का काम करते हैं। इसी काम के लिए […]

कभी पूर्णिया की मिट्टी से उठी एक आवाज़, आज देश की सीमाओं की रक्षा के साथ-साथ हिंदी भाषा की मर्यादा की भी रखवाली कर रही है। ये कहानी है कमलेश कमल की — एक ऐसे अधिकारी की जो सिर्फ वर्दी नहीं पहनते, बल्कि शब्दों से भी भाषा-प्रहरी का काम करते हैं। इसी काम के लिए आज राष्ट्रीय स्तर पर जाने भी जाते हैं। हिंदी में उनके कार्य का महत्त्व इससे समझा जा सकता है कि ‘टायकून इंटरनेशनल’ ने हिंदी में उनके काम के आधार पर उन्हें भारत के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था।

गांव से वर्दी तक का सफ़र

बिहार के पूर्णिया जिले की गलियों से कमलेश कमल का सफर शुरू हुआ। बचपन से ही उन्हें हिंदी से विशेष लगाव था। अख़बार की कतरनों से लेकर पुरानी किताबों तक, हर जगह से सुंदर शब्द लेकर वे सहेजते जाते। धीरे-धीरे पढ़ाई के साथ-साथ लेखन में भी रुचि बढ़ती गई, लेकिन आगे का सफर इतना आसान भी नहीं था।

कठिन परिश्रम और दृढ़ निश्चय के साथ उन्होंने UPSC परीक्षा 2007 में सफलता पायी और भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में अधिकारी नियुक्त हुए। एक तरफ कंधों पर सीमा सुरक्षा की जिम्मेदारी, और दूसरी तरफ दिल में एक और जज़्बा — ‘हिंदी की सेवा’।

जब भाषा मिशन बन गई

अधिकारी बनने के बाद हिंदीप्रेमी कमलेश कमल ने खुद को वर्दी तक सीमित नहीं किया। उन्होंने देखा कि शासकीय संस्थानों में हिंदी का प्रयोग सिर्फ औपचारिकता तक सीमित है। इससे उन्हें भीतर ही भीतर पीड़ा हुई।

वे कहते हैं: “हिंदी सिर्फ भाषा नहीं, हमारी संवेदना है। हम गर्व से हिंदी बोले-लिखें…हिंदी को लेकर कोई भी हीनताबोध पाप है।” इसी सोच से उन्होंने एक अनोखी यात्रा शुरू की। ये यात्रा भाषा के शुद्ध रूप को व्यवहार में लाने की है।

लेखन: शब्दों के माध्यम से सेवा

कमलेश कमल का लेखन भावुक नहीं, बौद्धिक भी है — लेकिन बोझिल नहीं। उन्होंने जो लिखा, उसमें व्याकरण की शुद्धता, शब्दों की सही समझ, और उपयोग की स्पष्टता है। उनकी दो प्रमुख किताबें — ‘भाषा संशय शोधन’ और ‘शब्द संधान’ — आज हिंदी भाषा के विद्यार्थियों, प्रतियोगी परीक्षार्थियों और अध्यापकों के लिए अमूल्य बन चुकी हैं। भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने भी उनकी पुस्तकों को हिंदी की अब तक की स्तरीय पुस्तकों की सूची में स्थान देकर उनकी गुणवत्ता पर मुहर लगाया है।

‘भाषा संशय शोधन’ में उन्होंने उन आम गलतियों को उजागर किया है, जो हम दैनिक उपयोग में बोलते और लिखते समय करते हैं— जैसे वाक्य-विन्यास की अशुद्धियां, वर्तनी की अशुद्धियां आदि। ‘शब्द संधान’ एक अनोखी किताब है, जिसमें व्याकरण को सूखा नियम नहीं, बल्कि जीवंत अनुभव के रूप में प्रस्तुत किया गया है और शब्दों के सटीक प्रयोग को रोचक तरीके से समझाया गया है।

“व्याकरण बंधन नहीं, दिशा है; नियम नहीं, अवसर है।” — कमलेश कमल

भारत सरकार के विभिन्न विभागों में राजभाषा के लिए ज़मीनी पहल

एक अधिकारी के रूप में कमलेश कमल ने सिर्फ कागज़ों पर हिंदी को बढ़ावा नहीं दिया, बल्कि व्यवहार में उतारा। इसके लिए उनकी विशेषज्ञता का उपयोग हिंदी ‘तकनीकी शब्दावली’ और ‘राजभाषा प्रशिक्षण’ से संबंधित अनेक कार्यक्रमों और योजनाओं में किया जाने लगा। इसका एक सकारात्मक परिणाम यह रहा कि उन्होंने तकनीकी विषयों — जैसे सिविल इंजीनियरिंग — की पढ़ाई हिंदी में संभव करने के लिए भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

“जिस भाषा में शब्द-प्रयोग शुद्ध और निश्चित हो, वही वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित हो सकती है।” — कमलेश कमल

अफसर से बेस्टसेलिंग लेखक तक

उनका योगदान सिर्फ भाषा तक सीमित नहीं रहा। कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने ‘ऑपरेशन बस्तर : प्रेम और जंग’ नामक बहुचर्चित उपन्यास लिखा, जो #1 बेस्टसेलर बना और एक वर्ष के भीतर ही उसके तीन संस्करण प्रकाशित हुए। उनके भाषा-वैज्ञानिक अवदान के लिए उन्हें अनेक सन्मानों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें ‘विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय सम्मान-2022’, तुलसीदास सम्मान आदि प्रमुख हैं।

उनका मानवीय पक्ष यह है कि कोरोना महामारी के समय उन्होंने बड़े स्तर पर समाज सेवा भी की — कमजोर लोगों तक मदद पहुँचाई और महामारी के संकट के दौरान टीम बनाकर लोगों के लिए काम किया।

संवाद और साक्षात्कार भी प्रेरणादायक

कमलेश कमल को न केवल लेखन या प्रशासनिक कामों के लिए जाना जाता है, बल्कि उनके संवाद और साक्षात्कार भी प्रेरणादायक रहे हैं। उनका कहना है कि समय प्रबंधन और विविध‑भूमिकाओं के एक साथ निर्वहन हेतु शरीर और मन दोनों स्तरों पर स्वस्थ रहना आवश्यक है। उनके साक्षात्कार में अक्सर यह बात मिलती है कि कठिनाइयां होंगी — समय कम होगा — पर उद्देश्य स्पष्ट हो तो काम आसान हो जाता है।

हिंदी को अगली पीढ़ी तक ले जाना

कमलेश कमल की दृष्टि बहुत व्यापक है। उनका मानना है कि जब तक तकनीकी, वैज्ञानिक और प्रशासनिक क्षेत्र हिंदी में सहज उपलब्ध नहीं होंगे, तब तक हिंदी आधिकारिक रूप से राष्ट्रभाषा नहीं बन पाएगी।

उनकी योजना है– अंग्रेज़ी‑माध्यम के तकनीकी पाठ्यक्रमों को हिंदी में लाना, सरकारी विभागों में हिंदी को व्यावहारिक और कार्यकारी भाषा के रूप में लागू करना और ग्राम-स्तर तक हिंदी भाषा की गुणवत्ता को वैज्ञानिक दृष्टि से पहुँचाना। जिससे अध्येताओं को हिंदी सिर्फ पढ़ने‑लिखने या आम बोलचाल की भाषा से आगे बढ़कर अच्छे रोजगार का माध्यम भी बनती दिखे।

इस तरह कमलेश कमल की कहानी दिखाती है कि कैसे गांव का सामान्य बच्चा जो कभी अपनी भाषा से प्रेम करता था, उसी भाषा के सहारे पहले अधिकारी बना और आगे उसी भाषा की सेवा करते हुए उसको प्रतिष्ठित करने में आज राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

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