विष्णु शर्मा की ‘कांग्रेस प्रेसिडेंट फाइल्स’ के हर पेज में कांग्रेस के कई किस्से
इतिहास के विद्यार्थी और धुरंधर पत्रकार विष्णु शर्मा आधुनिक भारत के इतिहास के जबरदस्त फैक्ट चेकर हैं। आधुनिक भारत के इतिहास पर कई हैरतअंगेज तथ्यों का उद्घाटन करने वाली उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी एक पुस्तक ‘कांग्रेस प्रेसिडेंट फाइल्स’ इन दिनों खूब चर्चा में है। इस किताब की टैगलाइन ही है—‘तथ्यों का […]
इतिहास के विद्यार्थी और धुरंधर पत्रकार विष्णु शर्मा आधुनिक भारत के इतिहास के जबरदस्त फैक्ट चेकर हैं। आधुनिक भारत के इतिहास पर कई हैरतअंगेज तथ्यों का उद्घाटन करने वाली उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी एक पुस्तक ‘कांग्रेस प्रेसिडेंट फाइल्स’ इन दिनों खूब चर्चा में है। इस किताब की टैगलाइन ही है—‘तथ्यों का खजाना जो कांग्रेस के बारे में आपकी राय बदल देगा’। बदलता इंडिया की इस विशेष सीरीज में आइए खुद विष्णु शर्मा से जानते हैं कि उनकी इस किताब में क्या खास है।
गांधी से पहले कांग्रेस के 38 साल: राज़ दर राज़!
मेरी पुस्तक ‘कांग्रेस प्रेसिडेंट्स फाइल्स’ कांग्रेस की स्थापना से लेकर गांधीजी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक के अध्यक्षों और अधिवेशनों की कई विस्फोटक कहानियां बताती है। 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई। 1924 के बेलगांव अधिवेशन में गांधीजी कांग्रेस के अध्यक्ष या सभापति चुने गए थे। इन 38 अधिवेशनों के इतिहास को जानने के लिए अब तक ऐसा कोई अकेला दस्तावेज नहीं है। इस पुस्तक के लिए इन सभी 38 अधिवेशनों की कार्यवाही की एक-एक लाइन को पढ़कर वो तमाम तथ्य जुटाए गए हैं, जो राजनीति और पत्रकारिता के छात्रों को जानना जरूरी है। साथ ही इस पुस्तक में कई तथ्य ऐसे भी हैं जो राजनीति के माहिर खिलाड़ियों को भी चौंकाते हैं।

कांग्रेस के ‘लॉयल्टी ओथ’ का अनसुना इतिहास! इस किताब में सबसे दिलचस्प तथ्य है, उस शपथ का एक-एक शब्द जानना, जो कांग्रेस अधिवेशनों में अंग्रेजी राज की वफादारी के लिए पढ़ी जाती थी। इसे ‘लॉयल्टी ओथ’ कहा जाता था।
औरंगज़ेब के गुरु से लेकर जिन्ना के साथी तक!
इस किताब में ऐसे तमाम तथ्य हैं जो पाठकों को हैरान कर देंगे। जैसे—कोई अध्यक्ष टीपू सुल्तान का वंशज था, तो किसी का खानदान बाबर संग भारत आया था और जिन्ना के साथ पाकिस्तान चला गया। एक अध्यक्ष के पुरखे औरंगजेब के शिक्षक रहे थे तो सावरकर को काला पानी की सजा सुनाने वाला जज भी कांग्रेस अध्यक्ष था। एक ने ब्रिटेन की महारानी को अवतार घोषित कर दिया था तो एक ने विक्टोरिया मेमोरियल बनवाया। एक कांग्रेस अध्यक्ष की तो लंदन में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दाढ़ी तक खींचने की तैयारी कर ली थी। कुछ कांग्रेस अध्यक्ष ऐसे भी रहे थे, जो मुस्लिम लीग के भी अध्यक्ष रहे।
पत्रकारिता और राजनीति का दस्तावेज़ी संगम!
पत्रकारिता के इतिहास पर काम कर रहे मीडिया शोधार्थियों के लिए भी यह किताब काफी काम की है। आज़ादी की लड़ाई के दौर में तमाम पत्र-पत्रिकाएं निकल रही थीं। इनमें से कई पत्र कांग्रेस से जुड़े नेता भी निकाल रहे थे। ऐसे में नेहरू परिवार के पत्रों-पत्रिकाओं के अलावा बाकी कांग्रेस नेताओं जैसे—बाल गंगाधर तिलक के ‘केसरी’, ‘मराठा’, मदन मोहन मालवीय के ‘लीडर’, ‘हिंदुस्तान’ आदि से जुड़े कई किस्से भी इस किताब में हैं। इस पुस्तक की खासियत यह है कि बहुत सारे फैक्ट्स सहजता से एक ही जगह मिल जाते हैं, जबकि इसके लिए आपको कई किताबें पढ़नी पड़तीं।
नेहरू परिवार, लव जिहाद और ढाका कनेक्शन!
पत्रकारिता की दुनिया के तमाम ऐसे किस्से इतिहास के पन्नों में दफन हैं, जो आज की पीढ़ी के लिए काफी दिलचस्प हो सकते हैं। ऐसा ही एक दिलचस्प किस्सा ‘कांग्रेस प्रेसिडेंट फाइल्स’ में नेहरू परिवार के पहले लव जिहाद और उसके ढाका कनेक्शन का है। आज जब इंदिरा गांधी द्वारा बनाए गए बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद वहां भारत विरोधी सुर तेज हो गए हैं, यह किस्सा मौजूं है।
यह किताब बताती है कि कैसे मोतीलाल नेहरू ने अपने अखबार ‘इंडिपेंडेंट’ की जिम्मेदारी 31 साल के मनमोहक व्यक्तित्व के स्वामी सैयद हुसैन को दी थी। सैयद हुसैन ढाका नवाब से करीबी रिश्ता रखते थे। उनकी मां भी फरीदपुर के नवाब की बेटी थीं। वे लंदन में पढ़े-लिखे थे। फीरोज शाह मेहता के अखबार ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ में भी काम कर चुके थे। ऐसे में मोतीलाल नेहरू ने जब उन्हें संपादक बना दिया तो उनका इलाहाबाद में नेहरू परिवार के घर ‘आनंद भवन’ में आना-जाना बढ़ गया। वहां अक्सर उनकी मुलाकात सरूप नेहरू से होती थी। 19 साल की सरूप, जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं, जिन्हें आज आप विजयलक्ष्मी पंडित के नाम से जानते हैं। ऐसे में खुद विजयलक्ष्मी पंडित ने उनसे अपने रिश्तों के बारे में अपनी आत्मकथा में क्या लिखा है, वह आप इस किताब में पढ़ सकते हैं। साथ ही जानेंगे कि इस रिश्ते का पता चलने पर नेहरू परिवार की प्रतिक्रिया क्या थी? गांधीजी की क्या भूमिका थी? सैयद को भारत से बाहर किस बहाने से भेजा गया और कब वे विदेश सेवा में शामिल हुए?
अमृतसर अधिवेशन, मोतीलाल नेहरू के किस्से
यह किताब ‘कांग्रेस प्रेसिडेंट्स फाइल्स’ कांग्रेस के उन अध्यक्षों के बारे में है, जो गांधीजी से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। मोतीलाल नेहरू भी 1919 के अमृतसर अधिवेशन में अध्यक्ष बने थे, इसलिए उनसे जुड़ी उस दौर की दिलचस्प घटनाएं भी इस पुस्तक का हिस्सा हैं। इस किताब के ज्यादातर पात्र वे हैं, जिनके बारे में आज की पत्रकार पीढ़ी भी नाम के अलावा ज्यादा कुछ नहीं जानती। ऐसे में पढ़ने-लिखने के शौकीन पत्रकारों के लिए इस पुस्तक में काफी अच्छा मसाला है। इसमें तमाम मुद्दे ऐसे हैं, जिनका आज की राजनीति से सीधा कनेक्शन जुड़ता है।
पुस्तक विवरण

कांग्रेस के अतीत का 352 पन्नों वाला सच!
‘कांग्रेस प्रेसिडेंट फाइल्स’ प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक अमेज़न व फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। किंडल एडिशन और पेपरबैक—दो संस्करणों में फिलहाल उपलब्ध है। कुल 352 पेज की इस किताब में 35 अध्याय हैं। खास बात यह है कि एक अध्याय से दूसरे अध्याय का कोई सीधा कनेक्शन नहीं है। यानी, पुस्तक उठाने पर जिस अध्याय की हेडिंग अच्छी लगे, उसे कभी भी पढ़ा जा सकता है। हर अध्याय के साथ संदर्भ (References) दिए गए हैं। ऐसे में उन तथ्यों की प्रामाणिकता को और बल मिलता है।
लेखक परिचय
इस पुस्तक के लेखक विष्णु शर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। इतिहास उनका विषय है। वे इतिहास से एम.फिल., नेट क्वालिफाइड हैं। इससे पहले उनकी तीन पुस्तकें—‘इंदिरा फाइल्स’, ‘इतिहास के 50 वायरल सच’ और ‘गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं’ प्रकाशित हो चुकी हैं। विष्णु शर्मा फिल्म समीक्षक भी हैं। इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, गोवा (IFFI) की ज्यूरी में वे दो साल रह चुके हैं।
‘दौर-ए-दिल्ली’ से डिजिटल युग तक फैक्ट चेकिंग के धनी
लगभग 25 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। अमर उजाला, न्यूज 24, इंडिया न्यूज़ आदि में काम कर चुके हैं। दैनिक जागरण में दिल्ली के इतिहास पर उनका कॉलम ‘दौर-ए-दिल्ली’ काफी चर्चा में रहा है। फैक्ट-चेकिंग पर उनके कई लेख और वीडियो विभिन्न न्यूज़ साइट्स और यूट्यूब चैनलों का हिस्सा हैं। कई साहित्य समारोहों एवं टीवी बहसों का भी हिस्सा रह चुके हैं।
विष्णु शर्मा की अन्य रचनाएं और योगदान
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से ठीक पहले अनु मलिक के संगीत से सजा उनका लिखा गीत ‘श्रीराम विराजेंगे जन्मभूमि में…’ जी म्यूजिक ने जारी किया था। उसके बाद, इसी जोड़ी ने जी म्यूजिक से ही संविधान के 75 साल पूरे होने पर एक गीत ‘ये संविधान है…’ रचा। विष्णु शर्मा आजकल गुमनाम नायकों को लेकर एक कॉमिक्स सीरीज़ भी लिख रहे हैं। बच्चों की एक एनिमेशन फिल्म ‘4th ईडियट’ के गीत और डायलॉग भी लिख चुके हैं।
भारत के राजनीतिक इतिहास का सबसे अनसुना दस्तावेज़ — अब एक क्लिक दूर है। आप इस किताब को इस लिंक से प्राप्त कर सकते हैं। https://www.amazon.in/Congress-Presidents-Files-1885-1923-Treasure/dp/9355626029
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