क्या आपने कभी सोचा? पगडंडी में छिपी हैं जीवन जीने की अद्भुत सीखें

गांव की पगडंडियां सिर्फ खेतों तक पहुंचने का रास्ता नहीं होतीं, बल्कि जीवन का दर्शन भी सिखाती हैं। कठिन रास्तों से निकलना, अवरोधों से बचकर बढ़ना और निरंतरता से मंज़िल तक पहुंचना — यही उनका संदेश है। इस लेख में दिल्ली के मशहूर गंगाराम अस्पताल के बेहोशी विभाग में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. भुवन चंद्र पाण्डेय […]

गांव की पगडंडियां सिर्फ खेतों तक पहुंचने का रास्ता नहीं होतीं, बल्कि जीवन का दर्शन भी सिखाती हैं। कठिन रास्तों से निकलना, अवरोधों से बचकर बढ़ना और निरंतरता से मंज़िल तक पहुंचना — यही उनका संदेश है। इस लेख में दिल्ली के मशहूर गंगाराम अस्पताल के बेहोशी विभाग में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. भुवन चंद्र पाण्डेय ने पगडंडी के बहाने जीवन को देखने का अनोखा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।

पगडंडी और गांव का आकर्षण

जब भी कभी गाँव या उनके पास के खेतों को देखता हूँ, तो बरबस ही मन करता है उन टेढ़ी-मेढ़ी रेखानुमा पगडंडियों में हरे-भरे लहलहाते खेतों के बीच दोनों हाथों को खोलकर, लहराते हुए प्रसन्नचित्त होकर, अनंत तक दौड़ता ही रहूँ। जब भी हम मैदानी या पहाड़ी क्षेत्र के गाँव जाते हैं, तो पगडंडी के बिना कहीं भी जाना संभव नहीं होता।

पगडंडी से मिलने वाली सीख

मध्यम गति से चलते हुए यहाँ कभी भी एक-दूसरे से टक्कर नहीं होती। हाँ, यदि चाल तेज है और भीतर दंभ है तो दुर्घटना अवश्यंभावी हो जाती है। कठिन से कठिन रास्ते व जंगल में भी पगडंडी से मार्ग आसानी से कट जाता है। अगर जीवन यात्रा के इस पथ पर इस सुंदर व बलखाती पगडंडी से मार्गदर्शन लिया जाए, तो बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

पगडंडी हमें सिखाती है कि मंज़िल तक पहुंचने का राज़ धैर्य और निरंतरता में छिपा है।

जीवन यात्रा और अवरोध

हमारे जीवन पथ पर भी जंगली पौधे व झाड़-झंखाड़ सरीखे दुष्कर अवरोध आते ही रहते हैं। अत्यधिक कठिन कार्य और अनचाहे व्यक्ति हमारे मार्ग को अवरुद्ध करते हैं। इनसे पार पाने के लिए पगडंडी की तरह कभी झुककर, कभी मुड़कर आसानी से आगे बढ़ा जा सकता है। “Ignorance is bliss” — यह कहावत जीवन यात्रा में पूरी तरह खरी उतरती है। रास्ते की अड़चनों को धीरे-धीरे, बिना उलझे पार करना चाहिए; ऐसे जैसे उनका अस्तित्व ही न हो। हर काँटीली झाड़ी और बड़े नुकीले काँटों को आप काट नहीं सकते। यदि हर एक को काटने बैठेंगे, तो मानसिक और शारीरिक ऊर्जा व्यर्थ होगी। आगे बढ़ना तो दूर की बात है, सारा अनमोल जीवन उसी में व्यर्थ हो जाएगा।

समस्याओं से निपटने की कला

बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी समस्याओं के लिए भी पगडंडी से प्रेरणा लेनी चाहिए। प्रकृति को छेड़े या नुकसान पहुँचाए बिना, कैसे दुरूह मार्गों पर भी — कभी उनसे बचते हुए, कभी रास्ता बदलते हुए, तो कभी आवश्यकता पड़ने पर निश्चित सीमा में काँट-छाँट करके — मार्ग बनाया जा सकता है। कोई भी नया कार्य हो, तो प्रारंभिक कठिनाइयों के बाद धीरे-धीरे वह सरल लगने लगता है। जैसे निरंतर पग धरते रहने से रास्ता सुगम और समतल बनता जाता है, वैसे ही मानव अपने गंतव्य तक पहुँच जाता है।

अवरोधों से उलझना नहीं, उनसे बचकर बढ़ना ही जीवन की सच्ची बुद्धिमानी है।

पगडंडी का अंतिम संदेश

पगडंडी स्वयं वहीं रहती है, पर चलने वाले को उसकी मंज़िल तक पहुँचा देती है। स्पष्ट अर्थ है कि — “गति करने वाला ही गंतव्य तक पहुँचाता है।”

लेखक डॉ. भुवन चंद्र पाण्डेय, दिल्ली के प्रसिद्ध गंगाराम अस्पताल में बेहोशी (एनेस्थिसिया) के डॉक्टर हैं। ऑपरेशन टेबल पर मरीजों को रिलैक्स करने में उन्हें महारत हासिल है।