एक बेटे की दास्तान: पिता की बरगदी छत्रछाया हटने के दर्द से IPS बनने का सफर
मैं बजरंग प्रसाद, ये मेरी कहानी है। खेतों की मिट्टी से निकले मेरे सपनों ने जब उड़ान भरी, तो राह में संघर्ष की आंधियां भी आईं। सिविल सर्विसेज की तैयारी के बीच पिता का साथ छूट गया। दो बार की असफलता ने रास्ता कठिन बनाया। मगर हौसला नहीं टूटा। फिर आया वो दिन। यूपीएससी की […]
मैं बजरंग प्रसाद, ये मेरी कहानी है। खेतों की मिट्टी से निकले मेरे सपनों ने जब उड़ान भरी, तो राह में संघर्ष की आंधियां भी आईं। सिविल सर्विसेज की तैयारी के बीच पिता का साथ छूट गया। दो बार की असफलता ने रास्ता कठिन बनाया। मगर हौसला नहीं टूटा। फिर आया वो दिन। यूपीएससी की सबसे बड़ी परीक्षा में चयन हुआ। आईपीएस काडर मिला। संघर्षों में मिली ये सफलता मेरे पापा के सपनों की मंजिल का पहला पड़ाव है। आइए आपसे अपनी इस कहानी को साझा करते हैं।
मेरी माटी की खुशबू, मेरा अभिमान
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के धोबहट गांव में हुआ। खेतों की खुशबू, मिट्टी की गंध और संघर्ष मेरे बचपन का हिस्सा थीं। मेरे पिता, राजेश यादव, केवल किसान नहीं, गांव के गरीबों के सच्चे साथी थे। उनके दो ही काम थे — खेत और गरीबों का हित के लिए खड़े रहना। इलाके का कोई दबंग किसी गरीब का हक छीनने की कोशिश करता, पापा अकेले ही उनके सामने खड़े हो जाते। गरीब को उसका हक और न्याय दिलाकर ही दम लेते। उन्हें खुद से ज्यादा दूसरों की चिंता होती थी।
वो मनहूस दिन जिसने सब बदल दिया
इन सबके बीच हमारा बचपन मस्त बीत रहा था। हमारा खुशहाल किसान परिवार था। खेती किसानी पिताजी बहुत ही अच्छे से करते थे। ईमानदारी, मेहनत और आत्मसम्मान हमारे परिवार की थाती थी। साल 2020 की बात है। मैं बीएससी की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था। तभी एक हादसा हुआ। इसने मेरे भीतर सब कुछ तोड़ दिया। गांव के ही कुछ दबंगों ने पापा की हत्या कर दी। वजह वो किसी गरीब के हक़ की लड़ाई लड़ रहे थे।

उस दिन मेरी दुनिया रुक गई। लेकिन उसी दिन मैंने यह भी ठान लिया — अब जीवन सिर्फ मेरा नहीं, मेरे पापा के अधूरे सपने का माध्यम है। अब मुझे रुकना नहीं था।
मां की मजबूती संघर्ष में बनी सहारा
पिता के निधन के बाद हमारी मां कुसुमकला पूरे परिवार की ढाल बन गईं। उन्होंने गांव में प्रधान पद की ज़िम्मेदारी संभाली। हम छह भाई-बहन हैं। उन्होंने अकेले हम सबकी परवरिश की। उन्होंने हमारी पढ़ाई लिखाई में किसी तरह की कोई कमी नहीं होने दी। मां का साहस और हौंसला यूपीएससी की तैयारी में नई प्रेरणा बना। पिताजी ने कोचिंग में पहले ही दाखिला करा दिया था। पिता का साया अब नहीं था लेकिन उनकी याद, उनके उसूल, उनका आदर्श, उनका हर शख्स के लिए खड़े होना मेरी तैयारी में एक मजूबत ताकत बन गया।
यूपीएससी के तीन प्रयास, हर बार नई परीक्षा
पहला प्रयास मैंने 2020 में किया। प्रारंभिक परीक्षा पास कर लिया। लेकिन मुख्य परीक्षा में असफल हो गया। उस समय पिता की मृत्यु का ग़म ताज़ा था। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। दूसरे प्रयास में मुख्य परीक्षा तक पहुंचा। लेकिन सिर्फ डेढ़ अंक से पीछे रह गया। इस बीच दादा जी का निधन हो गया। एक के बाद एक सदमे मुझे तोड़ रहे थे। लेकिन मां हमेशा हौंसला बनी रही। उन्होंने हमेशा कहा, “बेटा, अब रुकना मत।”
तीसरे प्रयास के दौरान मैंने खुद को पूरी तरह झोंक दिया। उस समय मेरी मानसिक स्थिति बेहद नाजुक थी। लेकिन लक्ष्य एकदम स्पष्ट था। वर्दी पहन कर उन लोगों के लिए खड़ा होना, जिनके लिए मेरे पापा खड़े होते थे।
साकार हुआ मेरे पिता का सपना

जब 2022 का रिजल्ट आया और मेरी रैंक 454 आयी। कुछ पल के लिए मैं सन्न रह गया। मेरी मेहनत, मेरी मां की दुआ, और पापा के साथ बिताए पल, सब आंखों के सामने तैरने लगे। मुझे IPS मिला। अभी वर्तमान में मैं सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी हैदराबाद में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा हूं। मुझे उत्तर प्रदेश कॉडर मिला है। यानी वहीं प्रदेश, वही माटी जहां मेरे पिता का सपना अधूरा छूट गया था। ये खुशी बहुत अलग है, लेकिन अधूरी भी है। काश पापा ये देख पाते।
इंटरव्यू में जवाब जो मुझे बहुत पसंद है
इंटरव्यू के दौरान मुझसे एक सवाल पूछा गया — “उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुओं की समस्या है। आप बिना बजट के इसका समाधान कैसे निकालेंगे?” मैंने जवाब दिया — “अगर हम स्थानीय स्तर पर पशुओं के लिए गौशालाएं बनाएं और वहां के लोगों को इससे जोड़ा जाए, तो वे दूध व अन्य उत्पादों से अपनी आजीविका चला सकते हैं। वहीं गोबर से गैस बनाकर गांव के लिए ऊर्जा स्रोत भी मिल सकता है। इससे सरकार का खर्च नहीं होगा और समाधान भी स्थायी होगा।” इंटरव्यू में मुझे 190 अंक मिले। शायद यही मेरे चयन की बड़ी वजह बना।

देश के प्रति जिम्मेदारी का एहसास है वर्दी
जब पहली बार वर्दी पहनी, तो एहसास हुआ ये सिर्फ एक सरकारी पोशाक नहीं है। मेरे भीतर मेरे पिता की आवाज गूंजती है। आज जब भी मैं किसी पीड़ित की मदद करता हूं, तो खुद को पापा के बहुत करीब महसूस करता हूं। मैं जानता हूं, जिस न्याय के लिए मेरे पिता लड़े, अब उसी न्याय को मैं अपनी जिम्मेदारी बना चुका हूं।
कठिनाइयों से कभी डरें नहीं, उनसे जूझना सीखें
मैं यूपीएससी की तैयारी करने वालों से कहूंगा अगर आप तैयारी कर रहे हैं तो आपका उद्देश्य सिर्फ नौकरी नहीं होना चाहिए, आपके अंदर सेवा का जुनून होना चाहिए। असफलता को अंतिम न समझें। मेरे दो प्रयास असफल हुए, लेकिन तीसरे ने कहानी बदल दी। अपनी भावना को ताकत में बदलिए। पिता की मौत मुझे तोड़ सकती थी, लेकिन मैंने उस दर्द को सफलता का मंत्र बनाया। कठिनाइयों से कभी डरें नहीं, बल्कि उनसे जूझना सीखें। अगर आपके भीतर सच्चा इरादा हो तो सीमित संसाधन कभी रुकावट नहीं होते।